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कोरोना का असर: इन सात बड़े शहरों में और सस्ते हो जाएंगे मकान, 35% गिर सकती है बिक्री

कोरोना वायरस के असर से देशभर में लॉकडाउन है और इससे जरूरी सामान-सेवाओं के अलावा बाकी सभी तरह के व्यापार ठप पड़े हैं. इससे इकोनॉमी और इंडस्ट्री को काफी नुकसान हो रहा है. इस वजह से देश के सात शहरों में मकान और सस्ते हो सकते हैं. पिछले कई साल से रियल एस्टेट में जारी मंदी की वजह से मकान पहले से ही सस्ते चल रहे हैं.

कोरोना वायरस के प्रकोप का मकान खरीदारों के लिए कुछ सकारात्मक असर होता दिख रहा है. इस वजह से देश के सात शहरों में मकान और सस्ते हो सकते हैं. पिछले कई साल से रियल एस्टेट में जारी मंदी की वजह से मकान पहले से ही सस्ते चल रहे हैं.

गौरतलब है कि कोरोना वायरस के असर से देशभर में लॉकडाउन है और इससे जरूरी सामान-सेवाओं के अलावा बाकी सभी तरह के व्यापार ठप पड़े हैं. इससे इकोनॉमी और इंडस्ट्री को काफी नुकसान हो रहा है.

पिछले कई साल से रियल एस्टेट में मंदी है और बैकिंग एवं वित्तीय जगत में नकदी के संकट के बाद तो इसमें और मंदी आई थी. इसकी वजह से कंपनियां काफी सस्ते दर पर मकान बेचने को मजबूर थीं. अब कोरोना के कहर से तो रियल एस्टेट इंडस्ट्री की कमर ही टूट जाने की आशंका है.

इन सात शहरों की बिक्री में गिरावट

संपत्ति को लेकर परामर्श देने वाली कंपनी एनरॉक के अनुसार कोरोना वायरस संक्रमण के कारण इस साल देश के सात बड़े शहरों में घरों की बिक्री में 35 फीसदी की गिरावट आ सकती है. ये शहर हैं दिल्ली-एनसीआर (गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गुरुग्राम, फरीदाबाद), मुंबई महानगर क्षेत्र (एमएमआर), कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, पुणे और हैदराबाद.

कंपनी ने एक रिपोर्ट में कहा कि व्यावसायिक संपत्तियों की बिक्री पर भी इसका बड़ा असर देखने को मिल सकता है. रिपोर्ट के अनुसार लीज पर ऑफिस लिए जाने की गतिविधियों में 30 फीसदी तक की तथा खुदरा क्षेत्र में 64 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है

एनरॉक प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स के चेयरमैन अनुज पुरी ने कहा, ‘नरम मांग तथा नकदी की खराब स्थिति से पहले से ही जूझ रहे भारतीय रियल एस्टेट क्षेत्र पर कोविड-19 के कारण भी प्रतिकूल असर देखने को मिल सकता है.’

रिपोर्ट के अनुसार इस साल अपार्टमेंट में बिक्री सिर्फ 1.7 से 1.96 लाख यूनिट के बीच हो सकती है. साल 2019 में इनकी बिक्री 2.61 लाख यूनिट की हुई थी.

डिलिवरी में हो सकती है देरी

प्रॉपर्टी विशेषज्ञों का कहना है कि अगले छह महीनों में पूरी तरह से मजदूरों की वापसी होने के साथ ही बिल्डरों के लिए ताजा आर्थिक हालात में फंड जुटाना भी एक समस्या ही है. ऐसे में उनकी तरफ से डिलिवरी में भी देरी होगी. कुल मिलाकर प्रोजेक्ट की डिलिवरी में एक साल का समय और लगेगा.

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