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DNA ANALYSIS: बाहर जाने के लिए जरूरी होगा इम्युनिटी सर्टिफिकेट!

कुछ लोगों के लिए शहादत ही सबसे बड़ी पुंजी बन जाती है. लेकिन आम लोग इतने खुशनसीब नहीं होते और उनके लिए स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी पूंजी है. इसीलिए अंग्रेजी में कहा जाता है हेल्थ इज वेल्थ. लेकिन इस कहावत को आपने कभी गंभीरता से नहीं लिया होगा. ऐसी ही एक दूसरी मशहूर कवाहत विज्ञान के एक सिद्धांत से निकली है जो कहती है सर्वाइवल ऑफ द फीटस. ये सिद्धांत मशूहर वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन ने दिया था. जिसके मुताबिक सिर्फ वही लोग संकट में भी जीवित रहते हैं जो खुद को लगातार बदलते रहते हैं और मजबूत बनाते रहते हैं. अब इन दोनों ही कहावतों को चरितार्थ करने का समय आ गया है.

अब स्वास्थ्य आपकी सबसे बड़ी पुंजि है और अगर आप फिट हैं तो ही आप नौकरी कर पाएंगे, यात्राएं कर पाएंगे और अपने परिवार और समाज के बचा पाएंगे. यानी अब स्वास्थ्य ही आपका पासपोर्ट होगा और स्वास्थ्य ही आपकी नई डिग्री होगा.

सबसे पहले आप ये समझिए कि आपका स्वास्थ्य कैसे लॉकडाउन में बंद अर्थव्यवस्था के दरवाजे खोल सकता है. इस अर्थव्यवस्था का सीधा संबंध आपकी नौकरी और आपके व्यापार से भी है.

दुनिया भर की सरकारें चाहती हैं कि अर्थव्यवस्थाओं को जल्द से जल्द खोल दिया जाए. लेकिन संक्रमण के डर की वजह से ये फैसला लेना आसान नहीं है.

अगर सरकारों ने जल्दबाजी की तो जिन लोगों को संक्रमण है वो दूसरे लोगों को भी बीमार कर सकते हैं और ऐसे में हालात नियंत्रण से बाहर हो जाएंगे और लॉकडाउन को अगले कई महीनों के लिए बढ़ाना पड़ सकता है.

तो अब सवाल ये है कि आखिर किया क्या जाए ? फिलहाल वैज्ञानिक इसके तीन उपाय सुझा रहे हैं. पहला ये कि जब तक कोरोना वायरस की वैक्सीन ना बन जाए तब तक सभी लोगों को घरों में बंद रखा जाए. दूसरा उपाय ये है कि जिनके शरीर में कोरोना वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्युनिटी विकसित हो चुकी है उन्हें बाहर निकलने की इजाजत दे दी जाए और तीसरा ये कि देश की सारी जनसंख्या को एक ही बार में संक्रमित होने दिया जाए. ऐसा हो जाने पर सिर्फ बुजुर्गों और बीमार लोगों को छोड़कर ज्यादातर लोगों के शरीर में कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडीज बन जाएंगे और इन लोगों के दोबारा बीमार पड़ने की आशंका बहुत कम हो जाएगी. इसे हर्ड इम्युनिटी (Herd Immunity) भी कहते हैं.

लेकिन अर्थव्यवस्था को देखते हुए दुनिया भर की सरकारें ना तो सभी लोगों को घर में बंद रखने के पक्ष में हैं और ना ही इस पक्ष में हैं कि जानबूझकर जनता के बीच संक्रमण फैल जाने दिया जाए. पहली स्थिति में लाखों लोग भूख और गरीबी से मर जाएंगे और दूसरी स्थिति में लाखों लोग बीमार या बुजुर्ग होने की वजह से मर जाएंगे. 

इसलिए अब कई देश कोरोना वायरस से स्वस्थ हो चुके लोगों को इम्युनिटी पासपोर्ट जारी करने पर विचार कर रहे हैं. ये वो लोग हैं जिनका शरीर कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई लड़ चुका है और अब इनके दोबारा बीमार पड़ने की आशंका बहुत कम है.

दरअसल आपके शरीर में जब भी कोई वायरस प्रवेश करता है तो शरीर उससे कई चरणों में लड़ता है. इस पूरी प्रक्रिया में अक्सर एक से दो हफ्ते का समय लग जाता है.

पहले चरण में कुछ विशेष तरह की कोशिकाएं वायरस के संक्रमण को धीमा करने की कोशिश करती हैं. अगर शरीर इस कोशिश में जल्द ही सफल हो जाता है तो कई बार संक्रमण के लक्षण दिखाई भी नहीं देते. ऐसे लोगों को ही एसिंप्टोमैटिक कहा जाता है. यानी इनके शरीर में वायरस तो होता है लेकिन उसे जुड़े लक्षण नहीं होते.

दूसरे चरण में शरीर वायरस के खिलाफ एंटी बॉडीज का निर्माण करता है. ये एंटी बॉडीज हर वायरस के लिए अलग होते हैं. यानी शरीर इन्हें बीमारी के हिसाब से कस्टमाइज करता है. ये एंटी बॉडीज एक प्रकार के प्रोटीन्स होते हैं जो वायरस से लड़ते हैं. इसके अलावा शरीर में मौजूद टी-सेल्स उन दूसरी कोशिकाओं की पहचान करती हैं जो वायरस से संक्रमित हैं. इसके बाद टी सेल्स संक्रमित कोशिकाओं के सफाए का काम शुरू करती हैं. कुछ विशेष प्रकार की टी सेल्स को मेमरी टी सेल्स कहा जाता है. ये ऐसी कोशिकाएं होती हैं जो शरीर में आए दुश्मन को याद रखती हैं और अगली बार जब कोई वायरस या बैक्टीरिया हमला करता है तो ये कोशिकाएं सक्रिय हो जाती हैं. 

एक आसान से टेस्ट के जरिए ये पता लगाया जा सकता है कि किसी के शरीर में संक्रमण के खिलाफ एंटी बॉडीज मौजूद हैं या नहीं. इस जांच के बाद आपको इम्युनिटी पासपोर्ट जारी किया जा सकता है और हो सकता है कि भविष्य में विदेश यात्राओं के लिए उन्हें ही वीजा दिया जाएगा जिनके पास ये इम्युनिटी पासपोर्ट होगा.

फिलहाल आप जब किसी और देश में जाते हैं तो आपको वीजा की अलग-अलग श्रेणियों में से किसी एक को चुनना होता है. अगर आप नौकरी करने किसी देश में जा रहे हैं तो आपको अलग प्रकार का वीजा दिया जाता है. आप घूमने जा रहे हैं तो ट्रैवल वीजा जारी होता है. ऐसे ही व्यापार के लिए अलग और डिप्लोमेटिक यात्राओं के लिए अलग वीजा लेना पड़ता है. इसके लिए आपकी शैक्षिक योग्यता, आपके बैंक अकाउंट, आपराधिक रिकॉर्ड और मेडिकल रिकॉर्ड की भी जांच होती है.

लेकिन हो सकता है कि भविष्य में विदेश यात्रा के लिए वीजा आपके शरीर में मौजूद एंटी बॉडीज के आधार पर दिया जाने लगे.

अगर आप अपने देश के अंदर भी काम काज पर लौटना चाहते हैं तो भी हो सकता है कि आपको सरकार से इम्युनिटी पासपोर्ट हासिल करना पड़े. कई देशों में इसे रिस्क फ्री सर्टिफिकेट भी कहा जाता है.

जो देश अपने नागरिकों को इम्युनिटी पासपोर्ट जारी करने के बारे में सोच रहे हैं उनमें ब्रिटेन, अमेरिका, चिली, इटली और जर्मनी जैसे देश शामिल हैं.

लेकिन अब आप ये जान लीजिए कि भविष्य में जारी होने वाले ये हेल्थ पासपोर्ट या हेल्थ सर्टिफिकेट आखिर काम कैसे करेंगे?

फिलहाल इसकी कोई मानक प्रक्रिया तय नहीं है. लेकिन जो हो सकता है वो हम आपको बताना चाहते हैं.

सबसे पहले आपकी सरकार आपसे कह सकती है कि आप एक विशेष मोबाइल फोन एप्लिकेशन पर अपना पहचान पत्र अपलोड करें और फिर अपनी सेल्फी उसपर अपलोड करें. आपके पहचान पत्र से आपके चेहरे का मिलान होने के बाद आपको एंटी बॉडी टेस्ट कराने के लिए कहा जा सकता है.

अगर टेस्ट में ये पता चल गया कि आपको कोरोना वायरस हो चुका है और आप इससे इम्यून हो चुके हैं तो आपको एक विशेष QR कोड जारी कर दिया जाएगा. इसके बाद जब आप अपने दफ्तर जाएंगे तो गेट पर आपका ये QR कोड स्कैन किया जाएगा. ये QR कोड स्कैन करने से ये पता चल जाएगा कि आप कोरोना वायरस से इम्यून हैं. इसी प्रक्रिया का पालन आपको बस, ट्रेन और मेट्रो में सफर करते हुए भी करना पड़ सकता है. शॉपिंग मॉल्स और रेस्टोरेंट्स में भी आपका इम्युनिटी सर्टिफिकेट देखकर ही आपको प्रवेश दिया जाएगा.

लेकिन इससे आशंका ये पैदा होती है कि आने वाले समय में पूरी दुनिया दो वर्गों में बंट जाएगी? एक वर्ग में वो लोग होंगे जिनके पास अलग-अलग वायरस से लड़ने के लिए इम्युनिटी है और दूसरे वर्ग में वो लोग होंगे जिनके पास ऐसी कोई इम्युनिटी नहीं है?

यही दो वर्ग आने वाले समय में किसी देश की राजनीति और अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा तय करेंगे.

जिनके पास इम्युनिटी सर्टिफिकेट नहीं होगा वो अपने शरीर का ध्यान रखने लगेंगे और अपनी इम्यूनिटी को मजबूत बनाएंगे ताकि वो भी रिस्क फ्री सर्टिफिकेट हासिल कर पाएं. राजनैतिक पार्टियों को अपने घोषणा पत्र में भी जाति, धर्म और आरक्षण जैसी बातों की जगह स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी होगी और समाज के ये दो वर्ग ही चुनाव में ये तय करेंगे कि किस पार्टी की सरकार आएगी और किसकी जाएगी? 

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