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DNA ANALYSIS: 20 लाख करोड़ के पैकेज में किसको क्या मिला? पढ़ें विश्लेषण

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया था, जिसके बाद बुधवार को वित्त मंत्री और उनकी टीम ने इस आर्थिक पैकेज के पहले हिस्से का ब्लूप्रिंट देश के सामने रखा है. आज हम इसी आर्थिक पैकेज को सरल भाषा में डिकोड करेंगे और फैसलों का पूरा मतलब समझाएंगे. 

आर्थिक पैकेज का फोकस इस बात पर है कि कैसे कर्मचारियों और कंपनियों के हाथ में ज्यादा पैसे आएं, जिससे वो ज्यादा खर्च कर सकें और अर्थव्यवस्था की गाड़ी फिर से पटरी पर लौटे. 

सबसे बड़ा फैसला ये है कि अगले साल मार्च तक नॉन सैलरीड इनकम पर टीडीएस (Tax Deduction At Source) कटौती को 25 प्रतिशत कम कर दिया गया है. इसे आसान भाषा में समझिए कि जो भी सर्विस प्रोवाइडर है या प्रोफेशनल्स हैं, अगर वो 1000 रुपए का काम करता है, तो उसमें पहले 100 रुपये टैक्स देना पड़ता था, लेकिन अब सिर्फ 75 रुपए टैक्स ही देना पड़ेगा. यानी 25 रुपए आपके बच जाएंगे. इस फैसले से करीब 50 हजार करोड़ रुपए लोगों के हाथ में आएंगे, जो रकम अब तक सरकार के पास जाती थी. इनकम टैक्स रिटर्न भी अब 30 नवंबर तक भर सकते हैं.

इसी तरह से आपकी सैलरी में ईपीएफ ( Employees Provident Fund) के हिस्से को भी कम किया गया है. पहले सैलरी से 12 प्रतिशत हिस्सा EPF में जाता था, अब सिर्फ 10 प्रतिशत ही जाएगा. यानी अब आपको इन हैंड सैलरी थोड़ी ज्यादा मिल पाएगी. इसे ऐसे भी समझिए कि अगर पीएफ में पहले 12 रुपए आपके हिस्से से और 12 रुपए आपकी कंपनी के हिस्से से जाते थे तो अब 10-10 रुपए ही जाएंगे यानी 24 रुपए की जगह 20 रुपए ही पीएफ में जाएंगे. इससे आपको भी फायदा होगा और आपकी कंपनी को भी फायदा होगा. 

इसके अलावा 15 हजार रुपए से कम सैलरी वाले कर्मचारियों के पीएफ की रकम सरकार अगले तीन महीने तक और भरेगी. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत पहले ये ऐलान किया गया था कि मार्च, अप्रैल और मई महीने के पीएफ का हिस्सा सरकार देगी. अब जून, जुलाई और अगस्त महीने में भी कर्मचारी और कंपनी दोनों के हिस्से की पीएफ की रकम सरकार ही देगी. इससे साढ़े तीन लाख कंपनियों और 72 लाख कर्मचारियों को फायदा होगा. 

आर्थिक पैकेज के इस पहले हिस्से का जो फोकस है, वो हमारे देश के छोटे और मध्यम उद्योग हैं, जिनसे करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी है. इन्हें माइक्रो, स्माल और मीडियम इंटरप्राइजेज यानी MSMEs कहा जाता है. इस सेक्टर पर देश की अर्थव्यवस्था भी काफी हद तक निर्भर है.

भारत में कृषि के बाद सबसे ज्यादा रोजगार इन्हीं छोटे उद्योगों से मिलता है. भारत में करीब 11 करोड़ लोग इन छोटी कंपनियों में काम करते हैं. भारत की GDP का 30 प्रतिशत हिस्सा इस सेक्टर से आता है. इन्हीं कंपनियों का देश के कुल निर्यात में 40 प्रतिशत हिस्सा है.

लेकिन कोरोना के दौर में सबसे बड़ा संकट इन्हीं छोटे और मध्यम उद्योगों पर है, क्योंकि पिछले 50 दिन से देश में लॉकडाउन है, कोई कारोबार चल नहीं रहा है. इसलिए अगर अर्थव्यवस्था की गाड़ी फिर से पटरी पर लाना है, तो इन छोटी-छोटी कंपनियों को ही मजबूती देनी होगी. यही वजह है कि आर्थिक पैकेज में सबसे पहले इन्हीं छोटे उद्योगों को राहत दी गई है.

MSME सेक्टर के लिए 3 लाख करोड़ रुपए का लोन दिए जाने का ऐलान हुआ है. इससे करीब 45 लाख कंपनियों को सीधा फायदा होगा. कंपनियों को कारोबार के लिए आसानी से बिना गारंटी के लोन मिल सकेगा. कंपनियां चाहें तो ब्याज का भुगतान एक साल बाद कर सकती हैं. एक साल तक उन्हें छूट मिलेगी.

MSMEs की परिभाषा में भी बदलाव कर दिया गया है. अब ये देखा जाएगा कि कंपनियों ने कितना निवेश किया और उनका कितना कारोबार हो रहा है. पहले ऐसा नहीं था. पहले 25 लाख तक का निवेश करने वाली कंपनियों को माइक्रो माना जाता था, लेकिन अब 1 करोड़ रुपए का निवेश और 5 करोड़ रुपए तक सालाना कारोबार करने वाली कंपनी को ही माइक्रो माना जाएगा. 

इसी तरह से स्माल इंटरप्राइजेज वो कंपनियां मानी जाएंगी, जिनमें 10 करोड़ रुपए का निवेश होगा और जिनमें 50 करोड़ रुपए तक का सालाना कारोबार होगा. मीडियम इंटरप्राइजेज वो कंपनियां मानी जाएंगी, जिनमें 20 करोड़ रुपए तक का निवेश होगा और 100 करोड़ रुपए तक का सालाना कारोबार होगा.

ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि हमारी घरेलू कंपनियां विदेशी कंपनियों के सामने कंपटीशन में टिक नहीं पाती थीं. इन कंपनियों के लिए लिमिट थी कि वो कितनी रकम का निवेश कर सकती हैं. मान लीजिए अगर कोई छोटी कंपनी अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए 25 लाख रुपए की कोई मशीन लगाना चाहती थी तो वो ऐसा नहीं कर पाती थी क्योंकि उसे डर होता था कि उसे सरकार से रियायतें नहीं मिलेंगी. 

अब निवेश की लिमिट बढ़ाने से ऐसा होगा कि जो कंपनियां खुद को बढ़ाना चाहती हैं और अपने प्रोडक्ट को बेहतर करना चाहती हैं, उनके लिए सरकार ने नई संभावनाएं खोल दी हैं, अब वो निवेश के जरिए अपने प्रोडक्ट और अपनी क्षमता को बेहतर करके बाजार में विदेशी कंपनियों से टक्कर ले सकने की स्थिति में आ जाएंगी.

लोकल को ग्लोबल करने के लिए ही आज 200 करोड़ रुपए से कम के ग्लोबल टेंडर के नियम को खत्म कर दिया गया यानी अब सरकार की तरफ से 200 करोड़ रुपए से कम का कोई ग्लोबल टेंडर नहीं होगा. अब भारत सरकार की तरफ से 200 करोड़ रुपए से कम का कोई ऑर्डर आएगा तो वो ऑर्डर घरेलू कंपनियों को ही मिलेगा. 

इसे इस तरह से समझिए कि अगर कोई भारतीय कंपनी पेन या पेंसिल बना रही है और उसकी कॉस्ट 100 रुपए प्रति पीस है, तो अभी तक ऐसा होता था कि चीन जैसे देशों की कंपनियां वही प्रोडक्ट 80 रुपए प्रति पीस की कीमत में बेचकर सरकारी ऑर्डर हासिल कर लेती थीं और भारतीय कंपनियों के लिए बाजार में टिके रहना मुश्किल हो जाता था.

इसके साथ ही सरकार ने 50 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त फंड बनाया है. ये रकम उन कंपनियों को दी जाएगी, जो कर्ज के बोझ की वजह से फेल होने की स्थिति में पहुंच गई. आर्थिक पैकेज में इस बात को भी सुनिश्चित किया गया है कि किसी भी घरेलू कंपनी का पेमेंट 45 दिन के अंदर क्लीयर हो जाए. यानी अगर किसी कंपनी ने किसी छोटी कंपनी से कच्चा माल लिया, तो उसे 45 दिन के अंदर पेमेंट करनी होगी. 

आर्थिक पैकेज के तहत ऐसे बड़े फैसले इसलिए किए गए हैं क्योंकि हमारे घरेलू उद्योग की क्षमता को बढ़ाया जाए, उन्हें एक ही दायरे में ना रखा जाए, बिजनेस बढ़ाने के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया जाए. ये प्रधानमंत्री के उस आर्थिक मंत्र के मुताबिक है, जिसमें उन्होंने लोकल के लिए वोकल होने और लोकल को ही ग्लोबल करने की बात कही थी. 

सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपए के जिस आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है. उसमें से 6 लाख करोड़ रुपए गरीबों, मध्यम वर्ग और छोटे और मध्यम उद्योगों के लिए दिए गए हैं. लेकिन अभी सरकार ने इसके बारे में विस्तार से नहीं बताया है कि 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की रकम सरकार कहां से लाएगी? कैसे सरकार इतने बड़े आर्थिक पैकेज को मैनेज करेगी, जो जीडीपी का 10 प्रतिशत है. इसका एक जवाब तो ये है कि सरकार ने अभी बाजार से अपनी उधारी बढ़ा दी है, पहले सरकार को साढ़े 7 लाख करोड़ रुपए की उधारी लेने का अनुमान था, लेकिन अब कोरोना संकट की वजह से सरकार को अतिरिक्त 4 लाख करोड़ रुपए बाजार से उठाने पड़ेंगे.

यानी सरकार की कुल बाजार उधारी लगभग 12 लाख करोड़ होगी. इसके अलावा सरकार के पास टैक्स से जो रकम आती है और जो रकम सरकार ने कई योजनाओं में बचत से जुटाई है, उससे सरकार इस आर्थिक पैकेज को मैनेज करने की कोशिश करेगी. इसके अलावा आर्थिक पैकेज का तीसरा स्रोत रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया RBI है, जो बैंकों को नकदी मुहैया करवा रहा है, जिससे बैंक आगे कर्ज दे सकें.

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