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भारत-चीन टकराव के बीच समझें ‘मेड इन इंडिया’ और ‘असेंबल्‍ड इन इंडिया’ के बारे में सबकुछ

नई दिल्‍ली. भारत और चीन की सेनाओं के बीच पश्चिमी लद्दाख की गलवान घाटी में तनाव (India-China Rift) लगातार बढ़ता जा रहा है. सीमा पर सोमवार रात से शुरू हुई हिंसक झड़पों में अब तक 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए हैं, जबकि कई चीनी सैनिक भी हताहत हुए हैं. इस बीच देश में भी चीन के खिलाफ गुस्‍सा लगातार बढ़ता जा रहा है. लोगों ने चीनी सामान का बहिष्‍कार (Boycott Chinese Goods) शुरू कर दिया. वहीं, एक बार फिर ‘मेड इन इंडिया; (Made in India) प्रोडक्‍ट्स को बढ़ावा देने की वकालत शुरू हो गई है. इस दौरान कुछ लोगों का कहना है कि ‘मेड इन चाइना’ के साथ ही चीन के ‘असेंबल्‍ड इन इंडिया’ (Assembled in India) उत्‍पादों का भी बहिष्‍कार किया जाना जरूरी है. अब सवाल ये उठता है कि इन दोनों में क्‍या अंतर है?

‘मेड इन इंडिया’ में कच्‍चे माल से लेकर श्रम बल तक भारतीय
जब किसी प्रोडक्‍ट के कंपोनेंट और तकनीक भारत में ही विकसित करने के बाद अंतिम उत्‍पाद तैयार किया जाए तो उसे ‘मेड इन इंडिया’ प्रोडक्‍ट कहा जाएगा. आसान शब्‍दों में समझें तो किसी उत्‍पाद को बनाने में इस्‍तेमाल होने वाला ज्‍यादातर कच्‍चा माल, श्रमबल, तकनीक, असेंबलिंग भारत में ही हो तो वह मेड इन इंडिया प्रोडक्‍ट होगा. यानी किसी प्रोडक्‍ट को तैयार करने में इस्‍तेमाल होने वाली तकनीक समेत हर चीज भारतीय ही होगी. वहीं, अगर कोई विदेशी कंपनी भारत में मैन्‍युफैक्‍चरिंग यूनिट लगाती है और प्रोडक्‍ट तैयार करने के लिए सभी संसाधन यहीं से जुटाती है तो तैयार होने वाला उत्‍पाद ‘मेक इन इंडिया’ होगा. इसमें टेक्‍नोलॉजी ट्रांसफर सबसे बड़ा मुद्दा होता है. अगर विदेशी कंपनी भुगतान के बदले किसी प्रोडक्‍ट की टेक्‍नोलॉजी ट्रांसफर कर देती है तो उसके रखरखाव के लिए संबंधित देश पर निर्भरता खत्‍म हो जाती है.

मेड इन इंडिया से भारत की अर्थव्‍यव्‍स्‍था को मिलती है मजबूती

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जब केंद्र सरकार ने मेक इन इंडिया को बढ़ावा दिया तो विदेशी कंपनियों के सामने पहली शर्त टेक्‍नोलॉजी ट्रांसफर की ही रखी गई थी. इससे भविष्‍य में इस तकनीक को अपग्रेड कर पूरी तरह से प्रोडक्‍ट की मैन्‍युफैक्‍चरिंग भारत में ही हो सके. ताकि ये प्रोडक्‍ट भविष्‍य में मेक इन इंडिया से मेड इन इंडिया में तब्‍दील किया जा सके. इससे देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है. विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलता है. प्रोडक्टस का निर्माण भारत में ही होने से रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं. साथ ही इससे आयात और निर्यात के बीच का अंतर कम होता चला जाता है. इससे भारतीय मुद्रा रुपये को भी मजबूती मिलती है.

असेंबल्‍ड इन इंडिया में लगता है भारत का श्रमबल-सुविधाएं
अगर कोई विदेशी कंपनी अपनी मैन्‍युफैक्‍चरिंग यूनिट भारत में लगाती है और उसके सभी कंपोनेंट अपने देश से आयात कर भारतीय श्रम बल का इस्‍तेमाल कर अंतिम उत्‍पाद तैयार करती है तो इसे असेंबलड इन इंडिया प्रोडक्‍ट कहा जाएगा. आसान शब्‍दों में समझें तो असेंबल्‍ड इन इंडिया प्रोडक्‍ट में कच्‍चा माल से लेकर तकनीक और सभी कंपोनेंट संबंधित देश में ही बनाए जाते हैं. इसके बाद उन्‍हें भारत में लाकर असेंबलिंग यूनिट में सिर्फ उन सभी कंपोनेंट को जोड़कर फाइनल प्रोडक्‍ट तैयार कर उन पर असेंबल्‍ड इन इंडिया की मुहर लगा दी जाती है. ऐसे उत्‍पाद किसी भी सूरत में भारतीय उत्‍पादों की श्रेणी में नहीं रखे जा सकते हैं.

2014 से 2017 के बीच चीन से ऐसे बढ़ा कंपोनेंट का आयात
वाणिज्‍य व उद्योग मंत्रालय की साल 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत 2014 में चीन से 6.3 अरब डॉलर कीमत के मोबाइल हैंडसेट आयात करता था. फिर नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद ये आंकड़ा लगातार घटता चला गया. भारत ने 2017 में 3.3 अरब डॉलर के मोबाइल हैंडसेट्स आयात किए. दरअसल, ये फर्क मेक इन इंडिया अभियान के कारण आया था. हालांकि, इसका दूसरा पहलू ये था कि भारत ने इस बीच मोबाइल कंपोनेंट्स का जबरदस्‍त आयात किया था. आंकड़ों में समझें तो भारत ने 2014 में चीन से जहां 1.3 अरब डॉलर के मोबाइल कंपोनेंट आयात किए थे. वहीं, 2017 में ये आयात 9.4 अरब डॉलर पहुंच गया था. इससे चीन से मोबाइल फोंस और टेलीकॉम पार्ट्स का कुल आयात 12.7 अरब डॉलर हो गया था. दरअसल, चीन की कंपनियां अपने देश से कंपोनेंट आयात कर मोबाइल फोन्‍स की भारत में असेंबलिंग कर रही थीं.

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