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DNA Analysis: हिंदी चीनी भाई-भाई नहीं ये हिंदी चीनी Bye-Bye कहने का वक्त है

नई दिल्ली: आज चीन के खिलाफ देश में कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए. चीन में बने सामान के खिलाफ लोगों का आक्रोश दिखा. लोग अब कह रहे हैं कि चीन के लिए भारत का बाजार बंद हो. लोग ये भी कह रहे हैं कि चीन की कंपनियों को भारत में मिले सभी कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिए जाएं और भविष्य में भी चीन की कंपनियों को कोई कॉन्ट्रैक्ट ना दिए जाएं. क्योंकि चीन की कंपनियां इसका खूब फायदा उठा रही हैं. क्योंकि जब सीमा पर चीन हमारे जवानों को शहीद कर रहा है, तब उसकी कंपनियों को भारत में कॉन्ट्रैक्ट दिए जा रहे हैं.

जैसे दिल्ली और मेरठ के बीच रैपिड रेल प्रोजेक्ट के लिए टनल बनाने के लिए करीब साढ़े 11 सौ करोड़ रुपये का कॉन्ट्रैक्ट, चीन की कंपनी शंघाई टनल इंजीनियरिंग कारपोरेशन लिमिटेड को दे दिया गया. इस चाइनीज कंपनी ने सबसे कम बोली लगाई थी और कॉन्ट्रैक्ट हासिल कर लिया, जबकि भारत की कंपनियां पीछे रह गईं.

इसी तरह से महाराष्ट्र में चीन की तीन कंपनियां करीब 5 हजार करोड़ रुपये का निवेश करेंगी. ये चीन की इंजीनियरिंग और ऑटोमोबाइल कंपनियां हैं, जिनके साथ महाराष्ट्र सरकार ने दो दिन पहले ही समझौता किया था. ये कंपनियां पुणे में अपनी फैक्ट्रियां लगाएंगी.

लेकिन सूत्रों के मुताबिक अब सरकार चीन की कंपनियों को दिए कॉन्ट्रैक्ट्स की समीक्षा भी कर सकती है. चीन के खिलाफ लोगों का गुस्सा बिल्कुल जायज है. क्योंकि अगर चीन, दुश्मन के तौर पर खुलकर सामने आ गया है, तो फिर उसके साथ किसी तरह के संबंध बढ़ाने और व्यापार करने की भी जरूरत क्या है?

जब भी चीन के साथ विवाद होता है, तो भारत में मेड इन चाइना प्रोडक्ट्स के खिलाफ अक्सर गुस्सा दिखता है. लोग विरोध प्रदर्शन करते हैं. इस बार भी यही हो रहा है. लेकिन फिर ये भी कहा जाता है कि चाइनीज सामान का बहिष्कार करना इतना आसान नहीं है.

इससे ऐसा लगता है कि हम चीन के सामान के बगैर रह नहीं सकते, लेकिन सवाल ये है कि आखिर चीन का ऐसा कौन सा सामान है, जिसके बिना हमारा काम नहीं चल सकता.

चीन में बना मोबाइल फोन हो, या आपके मोबाइल फोन के चाइनीज ऐप्स हों. चीन में बना सस्ता TV हो, चीन में बनी सस्ती SUV हो, या फिर दीवाली में घर सजाने के लिए लगाई जाने वाली चाइनीज लाइट्स हों.

आप एक बार सोच कर देखिए कि इनमें से चीन का ऐसा कौन सा सामान है, जिसके बिना हमारी जिंदगी रुक जाएगी. अगर हम इन चीजों का इस्तेमाल करना बंद कर दें तो कौन सी आफत आ जाएगी.

अगर हम इन चाइनीज चीजों की जगह पर किसी भारतीय या फिर किसी दूसरे विदेशी सामान का इस्तेमाल करना शुरू कर दें, तो इससे बड़ा फर्क आ सकता है. क्योंकि हिंदी चीनी भाई भाई कहने का वक्त बीत चुका है, अब हिंदी-चीनी Bye Bye कहने का वक्त आ गया है.

हमने हिंदी चीनी बाय बाय के नाम से एक मुहिम शुरू की है. और सोशल मीडिया पर इसे जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है. और ट्वीटर पर हमारा हैशटैश कुछ ही मिनटों में नंबर वन ट्रेड करने लगा. ये आप सबकी मेहनत हैं और आप चाहें तो Hashtag Hindi Cheeni Bye Bye पर लगातार ट्वीट कर सकते हैं. और अपनी भावनाएं व्यक्त कर सकते हैं.

वैसे आपको ये भी बता दें कि सरकार के स्तर पर भी हिंदी चीनी Bye Bye की शुरुआत हो चुकी है. ऐसा बताया जा रहा है कि संचार मंत्रालय ने BSNL के साथ-साथ प्राइवेट टेलीकॉम कंपनियों को भी निर्देश दिए हैं कि वो चीन की कंपनियों पर निर्भरता कम करें. अगर चीन की किसी कंपनी ने किसी प्रोजेक्ट में कोई बोली लगाई है, तो उस पर नए सिरे से विचार किया जाए. यानी ये चीन के लिए साफ-साफ संदेश है कि या तो वो अपनी हरकतों से बाज आए या फिर इसका खामियाजा भुगतने के लिए तैयार रहे.

अगर हम इन चाइनीज वस्तुओं को अचानक अपनी जिंदगी से बाहर नहीं कर सकते तो क्या हम ये काम, धीरे-धीरे और आने वाले कुछ वर्षों में नहीं कर सकते? लद्दाख के शिक्षाविद सोनम वांगचुक ने कुछ दिन पहले चाइनीज सामान के बहिष्कार की मुहिम चलाई थी. उन्होंने कहा था कि चाइनीज सामान का बहिष्कार हम तुरंत नहीं कर पाएंगे. इस काम को हमें योजनाबद्ध तरीके से करना होगा. 

लेकिन इसके लिए हमें उसी तरह का संकल्प करना होगा, जैसा संकल्प जैन धर्म के लोग लेते हैं. जैन धर्म के लोग मीट, प्याज नहीं खाते, शुद्ध शाकाहारी भोजन करते हैं. इस संकल्प का असर बाजार पर भी इस तरह से पड़ा कि जगह-जगह जैन भोजनालय और रेस्त्रां शुरू हो गए. इसी तरह से मुस्लिमों के लिए पूरी दुनिया में हलाल मीट का बड़ा बाजार बन गया.

यानी अपनी आदत, परंपरा और संकल्प से एक नया बाजार तैयार हो जाता है. अगर हम चीन में बने सामानों को भी इसी नजर से देखें तो क्या चाइनीज प्रोडक्ट्स के खिलाफ बाजार तैयार नहीं किया जा सकता.

इसलिए आज हमें इस बारे में सोचना होगा कि क्या हम एक ऐसा ईको सिस्टम बना सकते हैं जिसमें चीन के लिए कोई जगह ही ना हो? अपनी सेना से ये मांग करना तो आसान है कि वो चीन के सैनिकों को उनके घर में घुसकर मार दे. हमारी सेना ऐसा करने में पूरी तरह सक्षम भी है लेकिन सवाल ये है कि एक राष्ट्र के तौर पर हम क्या कर सकते हैं?

क्या आप अपने घरों में अपने परिवारों के साथ बैठकर चाय की चुस्कियां लेते हुए इस खून खराबे का सिर्फ Live Telecast देखना चाहते हैं या फिर आप भी चीन के खिलाफ इस लड़ाई में एक महत्वपूर्ण रोल निभाना चाहते हैं?

अगर आपने भारत और चीन के सैनिकों के बीच धक्कामुक्की के पुराने वीडियो ध्यान से देखे होंगे, तो आपको ये पता चलेगा कि सीमा पर अपनी एक एक इंच जमीन की रक्षा के लिए किस तरह से हमारी सेना के जवान लड़ते हैं. इसी के लिए हमारे 20 जवानों ने गलवान घाटी में शहादत दी है. प्रधानमंत्री ने आज कहा है कि देश के इन जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा और देश को इस बात का गर्व होना चाहिए, कि हमारे जवानों ने मारते-मारते अपनी जान गंवाई है. हमारी सेना के जवान हों, या फिर उनके परिवार हों, देश के लिए समर्पण क्या होता है, इनसे ही सीखा जा सकता है. आज हम गलवान घाटी में शहीद 20 जवान और उनके परिवार की कहानियां आपके लिए लेकर आए हैं.

20 शहीद जवानों में बिहार के सहरसा के शहीद सिपाही कुंदन यादव भी हैं. उनकी 7 वर्ष पहले शादी हुई थी, उनके छह वर्ष और चार वर्ष के दो बेटे हैं. परिवार का सहारा चला गया है, लेकिन पिता का हौसला देखिए कि जीवन के सबसे बड़े दुख के बावजूद उन्होने ये कहा है कि क्या हुआ, जो उनका बेटा देश के लिए शहीद हो गया, वो तो अपने दोनों पोतों को भी देश के लिए न्यौछावर कर देंगे. 

ऐसे लोग किसी भी देश को सौभाग्य से मिलते हैं, जो अपने बेटे के शहीद होने के बाद भी विचलित नहीं हुए. और ये कोई अमीर परिवारों के लोग नहीं हैं, बहुत ही सामान्य परिवार के लोग हैं. लेकिन साधारण से दिखने वाले इन लोगों में देश के लिए जो जज्बा है, वो असाधारण है.

झारखंड के शहीद सिपाही कुंदन ओझा की कहानी आपको बताते हैं. 28 वर्ष के शहीद कुंदन सिर्फ 17 दिन पहले ही पिता बने थे. वो अपनी बेटी का चेहरा तक नहीं देख पाए. ना उनकी बेटी अब कभी अपने पिता को देख पाएगी.

झारखंड के ही शहीद सिपाही गणेश हांसदा तो अभी सिर्फ 20 वर्ष के ही थे. वो दो वर्ष पहले ही सेना में शामिल हुए थे और ट्रेनिंग के बाद उन्हें सीधे लद्दाख में पोस्टिंग मिली थी. दो हफ्ते पहले ही परिवार वालों से उनकी आखिरी बार बातचीत हुई थी, तब उन्होंने कहा था कि चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है.

तमिलनाडु के शहीद हवलदार K पलानी छह महीने पहले आखिरी बार अपने घर आए थे. 3 जून को उनका जन्मदिन था, जब वो 40 वर्ष के हुए थे. इसी दिन उनके परिवारवालों ने नए घर में गृह प्रवेश किया था, जो घर उन्होंने कर्ज लेकर बनवाया था. लेकिन शहीद पलानी अपने नए घर को देख नहीं पाए.

भारत के लिए चुनौती सिर्फ चीन ही नहीं है बल्कि भारत के अंदर बैठे वो लोग भी चुनौती की तरह हैं जो खुद को चीन मामलों का विशेषज्ञ तो बताते हैं लेकिन असल में ये लोग ऐसे नीम हकीम विशेषज्ञ हैं जिनकी सारी जानकारियां आधी अधूरी हैं. इनमें बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो सेना में अपना कार्यकाल तक पूरा नहीं कर पाए. यानी जिन लोगों ने कभी रण को ही बीच में छोड़ दिया वो आज टीवी और सोशल मीडिया पर सेना की रणनीति पर बड़ी-बड़ी बातें करते हैं. इन लोगों के Resume में आज भी Ex Army Man जैसे शब्द लिखे होते हैं लेकिन असल में ये वो लोग हैं जिन्होंने अपने निजी हितों के लिए रिटायरमेंट से पहले ही सेना छोड़ दी. अब इनमें से कई लोगों ने चीन के नाम की दुकान खोल ली है.

ये लोग विशेषज्ञ बनकर बताते हैं कि भारत की तैयारियों में क्या कमी है. ये ठीक ऐसा ही है जैसे कोई क्रिकेटर दो या तीन मैच खेलने और उसमें खराब प्रदर्शन करने के बाद कमेंटेटर बन जाएं और बड़े-बड़े खिलाड़ियों के शॉट्स का विश्लेषण किसी विशेषज्ञ की तरह करने लगें. बहुत सारे कथित विशेषज्ञ तो ऐसे भी हैं जिन्होंने खुद कभी सेना ज्वाइन ही नहीं की और ये लोग सिर्फ इसलिए चीन पर इतना ज्ञान देते हैं क्योंकि इनके परिवार का कोई ना कोई सदस्य कभी सेना में रहा है.

अब आप सोचिए कि अगर किसी क्रिकेटर का कोई बेटा सिर्फ इसलिए लोगों को क्रिकेट की कोचिंग देने लगे कि उसके पिता ने कभी क्रिकेट खेला था तो क्या वो कभी सच में खिलाड़ियों को क्रिकेट की सही कोचिंग दे पाएगा. इसलिए चीन के नाम पर दुकान खोलने वाले इन नीम हकीमों से बचकर रहिए क्योंकि चीन किसी की जान के लिए खतरा हो या ना हो नीम हकीम खतरा ए जान जरूर होते हैं.

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