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Boycott China: मेड इन इंडिया राखियों की मांग बढ़ी, मोदी राखी देगी चीनी राखियों को टक्कर

Boycott China Products in India: कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) की अगुवाई में 10 जून 2020 को शुरू हुए चीनी उत्पादों के बहिष्कार के राष्ट्रीय अभियान को पूरे देश में जोरदार समर्थन मिल रहा है. न केवल बाजार बल्कि उपभोक्ता भी इस बार चीन को सबक सिखाने के लिए दृढ़ संकल्प हो गए हैं. इसकी झलक आगामी 3 अगस्त को रक्षाबंधन पर दिखाई देगी. बाजारों में इस बार भारतीय सामान से बनी राखियों की मांग बढ़ गई है. खरीदार चीनी राखियों की बजाय भारतीय सामान से बनी राखियों के लिए अधिक कीमत भी देने को तैयार हैं.

पिछले कुछ वर्षों में चीन निर्मित राखी और राखी बनाने के लिए अन्य जरूरी सामान जैसे फोम, मोती, बूंदें, धागा, सजावटी थाली आदि ने भारत के राखी बाजार पर एक तरीके से कब्जा कर लिया है. रक्षाबंधन पर एक अनुमान के अनुसार देशभर में लगभग 50 करोड़ से ज्यादा राखियां खरीदी जाती हैं. प्रतिवर्ष लगभग 6 हजार करोड़ रुपये का राखी का व्यापार होता है, जिसमें पिछले कई वर्षों से चीन लगभग 4 हजार करोड़ रुपये की राखी अथवा राखी का सामान भारत को निर्यात करता आया है. इस बार कैट की ‘हिन्दुस्तानी राखी’ मुहिम की घोषणा के बाद चीन को 4 हजार करोड़ रुपये के व्यापार का झटका लगना तय है.

बॉयकॉट चाइनीज प्रॉडक्ट से मिले नए बड़े अवसर

कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी सी भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने बताया कि चीनी उत्पादों के बहिष्कार के अभियान ने देश भर में भारतीय व्यापार में अनेक नए बड़े अवसर प्रदान किए हैं. राखी के इस त्योहार पर देश भर में कारीगरों, स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं ,घरों व आंगनवाड़ी में काम करने वाली महिलाएं बड़े पैमाने पर कैट के सहयोग से राखियां बना रही हैं. इससे उन्हें न केवल रोजगार मिल रहा है बल्कि अकुशल महिलाओं को अर्ध-कुशल श्रमिकों में परिवर्तित करके उन्हें अधिक से अधिक सजावटी, सुंदर और नए डिजाइन की राखी बनाने के लिए कैट प्रोत्साहित कर रहा है.

इस बार दिखेंगी कुछ हटके राखियां

भरतिया और खंडेलवाल का कहना है कि शायद यह पहली बार है कि पारंपरिक राखी बनाने के अलावा, महिलाओं ने नए-नए प्रयोग करते हुए कई अन्य प्रकार की राखियां भी विकसित की हैं. इनमें विशेष रूप से तैयार ‘मोदी राखी’, ‘बीज राखी’ भी शामिल है. बीज राखी के बीज राखी के बाद पौधे लगाने के काम में आ सकते हैं. इसी प्रकार से पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए मिट्टी से बनी राखियां, दाल से बनी राखियां, चावल, गेहूं और अनाज के अन्य सामानों से बनी राखियां, मधुबनी पेंटिंग से बनी राखियां, हस्तकला की वस्तुओं से बनी राखियां, आदिवासी वस्तुओं से बनी राखियां आदि भी बड़ी मात्रा में देश के विभिन्न राज्यों में बनाई जा रही हैं.

वहीं गाय-गोबर से बनी सजावटी वस्तुएं भी प्रचुर मात्रा में बन रही हैं. ये राखी और अन्य कलाकृतियां बेहद सस्ती हैं, जो हाथ से बनती हैं और जिनको बनाने में कोई मशीन या तकनीक की आवश्यकता नहीं है. इस वर्ष भारतीय महिलाओं की वास्तविक प्रतिभा और कला कौशल को विभिन्न प्रकार की राखियों में देखा जा सकता है. इन राखियों की बिक्री में कैट के व्यापारी नेता दिल्ली सहित प्रत्येक राज्य में इन उद्यमी महिलाओं की सहायता कर रहे हैं.

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