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COVID-19 Vaccine के भारत में हो रहे हैं ह्यूमन ट्रायल; वॉलेंटियर बनने का क्या है प्रावधान, जान लें इससे जुड़े खतरे

COVID-19 vaccine trials in India: जायडस केडिला, भारत बायोटेक और ऑक्सफोर्ड अपने नोवल कोरोनावायरस के लिए विकसित वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रॉयल कर रही हैं. भारतीय इन ट्रॉयल्स के लिए वालेंटियर बन सकते हैं. यह जान लें कि किसी वैक्सीन की क्षमता और सुरक्षा जानने के लिए ट्रॉयल किया जाता है. इसके लिए स्वस्थ व्यक्ति जिन्हें संक्रमण नहीं हुआ है वो वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रॉयल के लिए वालेंटियर बन सकते हैं. कोरोनावायरस के मामले भी शोधकर्ता मनुष्यों पर वैक्सीन की सुरक्षा का आकलन कर रहे हैं. इन ट्रॉयल्स में भागीदारी पूरी तरह व्यक्ति पर निर्भर करता है.

द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रत्येक कंपनी जो कोरोनावायरस वैक्सीन पर काम कर रही है, उसका वैक्सीन चयन का अपना मानदंड है. ट्रॉयल की प्रगति के आधार पर इन मानदंडों में बदलाव हो सकता है. इस तरह अपने क्लिनिकल ट्रॉयल की जरूरत के अनुसार कंपनी वालेंटियर की पात्रता निर्धारित करती है. भारत बायोटेक की कोवैक्सीन और जायडस के के पहले फेज के क्लिनिकल ट्रॉयल के लिए 18 साल से 55 साल की उम्र के वालेंटियर को आमंत्रित किया गया. हालांकि, जिन्हें हाई ब्लड प्रेशन, अस्थमा या अन्य दूसरी तरह की एलर्जी है, उन्हें क्लिनिकल ट्रॉयल से अलग रखा गया.

ट्रॉयल में निर्धारित होती है उम्र सीमा

कोविड19 वैक्सीन प्रोग्रेस पर अध्ययन के अनुसार, भारत में ऑक्सफोर्ड के कोविशील्ड के क्लिनिकल ट्रॉयल के लिए उम्र की न्यूनतम सीमा 18 साल रखी है. जबकि भारत बायोटेक और जायडस केडिला के ट्रॉयल के लिए उम्र सीमा 12 साल के 65 साल के बीच रखी गई है. रिपोर्ट के अनुसार, इन ट्रॉयल में वे ही पंजीयन करा सकते हैं, जिन्हें नोवल कोरोनावायरस संक्रमण नहीं हुआ है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि वालेंटियर द क्लिनिकल ट्रॉयल रजिस्ट्री आफ इंडिया की ओर से उपलब्ध कराई गई जानकारी पढ़ने के बाद ही पंजीयन करा सकते हैं और संबंधित जगह पर जा सकते हैं. इस बीच, कंपनियां भी वालेंटियर्स के लिए विज्ञापन जारी करती है. इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेस एंड एसयूएम हॉस्पिटल ओडिशा के कम्युनिटी मेडिसिन डिपार्टमेंट ने संभावित वालें​टियरर्स के लिए अलग—अलग वेबसाइट पर विज्ञापन जारी किया है

वालेंटियर की आडियो-विजुअल सहमति जरूरी

किसी वैक्सीन की शुरुआत के लिए ट्रॉयल से पहले वालेंटियर्स को पूरी प्रक्रिया विधिवत जानने के बाद अपनी सहमति आडियो और वीडिया फॉर्मेट में देनी जरूरी होती है. गौर करने वाली बात है कि कोरोनावायरस वैक्सीन ट्रॉयल में यदि कोई वालेंटियर संक्रमण से उबर चुका है तो उसे वैक्सीन ट्रॉयल के लिए अयोग्य करार दिया जाएगा.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय मानकों के अनुसार, किसी भी वालेंटियर को क्लिनिकल ट्रॉयल में भागीदारी के लिए कोई भुगतान नहीं किया जाता है. पहले तय मानकों के तहत फूड और ट्रैवल खर्च के भुगतान का प्रावधान है. अब सवाल यह है कि यदि ट्रॉयल गलत हो जाता है तो क्या होगा? सबसे पहले यह बात दें कि अधिकांश ह्युमन ट्रॉयल में कोई बहुत खतरनाक या बुरा रिएक्शन नहीं देखा जाता है क्योंकि इससे पहले वैक्सीन का एकसमान जेनेटिक कोडिंग के साथ जानवरों पर टेस्ट किया गया होता है. मंजूरी के बाद ही कंपनी इंसानों पर क्लिनिकल ट्रॉयल शुरू करती है.

हादसा होने पर मुआवजे का है प्रावधान

रिपोर्ट के अनुसार, प्रत्येक ट्रॉयल के लिए एक डाटा एंड सेफ्टी मॉनिटरिंग बोर्ड (DSMB) का गठन किया जाता है. जो कि सभी प्रक्रियाओं पर नजर रखती है. DSMB इकट्ठा की गई जानकारी का अध्ययन करती है. यदि कोई बड़ी दिक्कत दिखाई देती है तो वह ट्रॉयल को रोकने की सिफारिश कर सकती है.  इस बीच, यदि ट्रॉयल्स के दौरान मृत्यु और अन्य कोई नुकसान होता है तो वालेंटियर को ट्रॉयल्स रूल्स आफ इंडिया के अनुसार मुआवजा दिया जाता है. रिपोर्ट के अनुसार, मुआवजा 2 लाख से 74 लाख रुपये के बीच हो सकता है, जो कि स्थिति पर निर्भर करता है.

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