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इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते समय भूल कर भी न करें ये 8 गलती, नहीं तो पड़ेगा भारी

वित्त वर्ष 2019-20 के लिए इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) फाइल करने की अंतिम तारीख 30 नवंबर 2020 है. सरकार ने कोविड-19 महामारी की वजह से इसकी डेडलाइन बढ़ाकर नवंबर आखिर तक किया है. इसका मतलब है कि अब टैक्सपेयर्स के पास इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करने के लिए ज्यादा समय है. आईटीआर फाइल करने में कई तरह के फायदे हैं. लेकिन अगर इसमें कोई गड़बड़ी हो जाती है तो नुकसान भी झेलना पड़ सकता है. इसी को देखते हुए आज हम आपको इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते समय होने वाली कुछ गलतियों के बारे में बता रहें हैं ताकि आप इसका ध्यान रखें.

गलत ITR फॉर्म चुनना
विभिन्न तरह के टैक्सेपयर्स के​ हिसाब से इनकम टैक्स रिटर्न फॉर्म भी निर्धारित किए गये हैं.
उदाहरण के तौर पर देखें तो ITR-1 उन लोगों के लिए है जिनकी कमाई सालाना 50 लाख रुपये तक की है और उनकी कमाई हाउस प्रॉपर्टी या अन्य सोर्स से आती है. इसी प्रकार ITR-3 फॉर्म बिजनेस और प्रोफेशन के जरिए कमाई करने वालों के लिए होता है. ITR-4 फ्रीलांसर्स आदि के लिए होता है. इसीलिए आईटीआर फाइल करते समय सही फॉर्म चुनना जरूरी है. अगर गलत फॉर्म भरा जाता है तो आपके द्वारा दाखिल इनकम टैकस रिटर्न मान्य नहीं होगा और इनकम टैक्स नोटिस भी मिल सकता है.
सभी इनकम सोर्स के बारे में जानकारी नहीं बताना
इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करते समय अपनी कमाई के सभी सोर्स के बारे में सही जानकारी देना अनिवार्य है. इसमें आपके पहले नियोक्ता, मौजूदा नियोक्ता, इन्वेस्टमेंट आदि से होने वाली कमाई शामिल होती है. अगर कोई सोर्स के बारे में जानकारी नहीं दी गई है तो टीडीएस सर्टिफिकेट और फॉर्म 26AS में यह साफ तौर पर दिख जाएगा. ऐसा करने पर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट जांच के बाद टैक्स डिमांड नोटिस भेज सकता है ताकि टैक्सपेयर अतिरिक्त बकाया टैक्स जमा कर सके.

फॉर्म 16 में केवल नियोक्ता की द्वारा जमा किए गए टैक्स के बारे में जानकारी होती है. टैक्सपेयर को टीडीएस या टैक्स कटौती के बाद होने वाली कमाई के बारे में भी जानकारी देनी होती है. उन्हें पीपीएफ पर मिलने वाले ब्याज, कृषि इनकम और एलआईसी मैच्योरिटी से होने वाली कमाई आदि के बारे में जानकारी देनी होती है.

एसेट बेचने पर कैपिटल गेन्स का डिक्लेयरेशन
आईटीआर फाइल में पूंजीगत संपत्ति के बिक्री, खरीद या इस पर किए गए खर्च के बारे में भी जानकारी देनी जरूरी होती है. अगर टैक्सपेयर पूंजीगत संपत्ति को बेचकर इन्वेस्टमेंट करने का दावा करता है तो भी उन्हें इन्वेस्टमेंट की पूरी जानकारी देनी होती है. टै

इन्वेस्टमेंट पर मिलने वाले ब्याज के बारे में जानकारी
टैक्सपेयर को फिक्स्ड डिपॉजिट, सेविंग्स अकाउंट, पोस्ट आॅफिस स्कीम्स, बॉन्ड्स व अन्य इन्वेस्टमेंट पर मिलने वाले ब्याज के बारे में भी जानकारी देनी होती है. सेविंग्स अकाउंट पर मिलने वाला ब्याज टैक्स कटौती के लिए योग्य होता है. 60 साल से कम उम्र के लोगों के लिए यह 10 हजार रुपये से ज्यादा नहीं होना चाहिए. एफडी, पोस्ट ऑफिस स्कीम्स पर मिलने वाले ब्याज की बात करें तो इसमें 50 हजार रुपये तक की टैक्स छूट ​मिलती है.

नाबालिग के इनकम की जानकारी
अगर टैक्सपेयर्स ने नाबालिग बच्चों के नाम पर कोई निवेश किया है तो इसपर मिलना ब्याज उन्हें इनकम के तौर परद दिखाना होगा. इसके आमतौर पर उस अभिभवक के साथ जोड़ा जाता है, जिनकी इनकम ज्यादा होती है. टैक्सपेयर दो बच्चों के​ लिए 1500-1500 रुपये तक की कमाई पर टैक्स छूट क्लेम कर सकते हैं.

फॉर्म 26AS के साथ टीडीएस डिटेल्स की वेरिफिकेशन नहीं
फॉर्म 26AS टीडीएस और टैक्स पेमेंट की समरी होता है. इसमें सैलरी, ब्याज, अचल संपत्ति की बिक्री आदि आदि से आने वाले इनकम की जानकारी होती है. टैक्स रिटर्न दाखिल करने से पहले इस फॉर्म 26AS और टीडीएस डिटेल को वेरिफाई कर लेना चाहिए. टैक्सपेयर फॉर्म 26AS को इनकम टैक्स लॉगिन के जरिए डाउनलोड कर सकते हैं. यह इनकम टैक्स की ई-फाइलिंग पोर्टल पर उपलब्ध होती है.

सभी बैंक अकाउंट के बारे में जानकारी देना
एक टैक्सपेयर को इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करते समय अपने सभी बैंक अकाउंट के बारे में जानकारी देनी है है. हालांकि, इसमें निष्क्रिय बैंक अकाउंट को नहीं शामिल किया जाता है. टैक्सपेयर उस बैंक अकाउंट को भी चुन सकते हैं, जिसमें वो टैक्स रिटर्न प्राप्त करना चाहते हैं.

आमतौर पर टैक्सपेयर यह मानकर चलते हैं उनके द्वारा प्राप्त सभी तरह के डोनेशन 100 फीसदी टैक्स फ्री होते हैं. हालांकि, यह सही नहीं है. कुछ डोनेशन पर केवल 50 फीसदी ही टैक्स छूट मिलती है.

इनकम टैक्स रिटर्न फाइल नहीं करना
अमूमन लोग यह मान लेते हैं कि इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना अनिवार्य नहीं है क्योंकि उनकी कुल कमाई टैक्स स्लैब में टैक्स देयता से बाहर है. अगर किसी व्यक्ति ने एक वित्तीय वर्ष के दौरान अपने बैंक अकाउंट में 1 करोड़ रुपये डिपॉजिट किया या विदेश ट्रैवल पर 2 लाख रुपये से ज्यादा खर्च किया है या किसी एक साल में 1 लाख रुपये से ज्याद बिजली बिल जमा किया है तो उन्हें इनकम टैक्स​ रिटर्न जरूर फाइल करना चाहिए. साथ ही, अगर कोई नागरिक भारत के बाहर किसी संपत्ति का मालिक है तो भी उन्हें इनकम टैक्स रिटर्न दाखिल करना चाहिए.

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