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Farmers Protest: किसानों को भड़काने वाले 4 गुनहगार

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Farmers Protest: किसानों को भड़काने वाले 4 गुनहगार

किसानों को बिचौलियों से बचाने के लिए लाए गए कृषि कानून का विरोध किसान क्यों कर रहे है? इसके पीछे राज गहरा है. केन्द्र सरकार लगातार मान मनौवल की कोशिश में जुटी है. लेकिन आंदोलनकारी मानने के लिए तैयार नहीं हैं. क्योंकि उन्हें लगातार भड़काया जा रहा है. 

खास बातें

  1. किसानों के चार गुनहगार
  2. मजहबी कट्टरपंथी और खालिस्तानी किसानों को भड़का रहे हैं
  3. विपक्ष और दुश्मन देश आग में घी डाल रहे हैं
  4. दिल्ली में अराजकता दुश्मनों के हित में

नई दिल्ली: किसानों का गुस्सा आसमान (Kisan Protest) पर है. सरकार से एक राउंड की बातचीत हो चुकी है. कृषि मंत्री ने स्पष्ट कहा है कि वह किसानों से हर मुद्दे पर बात करने के लिए तैयार हैं. लेकिन आंदोलन का हंगामा हर रोज बढ़ता जा रहा है. क्योंकि देश विरोधी ताकतें (Anti National) किसानों को बहकाने का कोई मौका नहीं चूक रहीं.

ये हैं किसानों के असली गुनहगार- 

1. मजहबी कट्टरपंथी
मोदी सरकार के छह सालों को कार्यकाल के दौरान मजहबी कट्टरपंथी बौखलाए हुए हैं. इस दौरान उठाए गए तीन तलाक (Teen Talaq), राम मंदिर (Ram mandir), नागरिकता संशोधन कानून (CAA) जैसे पीएम मोदी (PM Modi) के कई कदमों से इनके देश विरोधी मंसूबों पर पानी फिर गया है. पहले इन्होंने देश के आम मुसलमानों को भड़काने की कोशिश की. शाहीन बाग का ड्रामा हुआ. दिल्ली में दंगा (Delhi Riots) फैलाने की साजिश रची गई. लेकिन जल्दी ही इनके चेहरों से नकाब उतर गया. 

भारत का आम मुसलमान (Indian Muslim) समझ गया कि इन कट्टरपंथियों उद्देश्य सिर्फ देश का विरोध करना है. तब उन्होनें इनसे किनारा कर लिया. केन्द्र सरकार ने भी चुन चुन कर इन जिहादी देशद्रोहियों की पहचान की और उन्हें कानूनी रुप से सजा दिलाना शुरु किया.

उमर खालिद, शरजील इमाम, ताहिर हुसैन जैसे कई दंगाई सलाखों के पीछे अपनी करतूतों की सजा पाने का इंतजार कर रहे हैं. जिसके बाद इन कट्टरपंथियों के हौसले पस्त हो गए. जिसके बाद इन्होंने दूसरे आंदोलनों को हाईजैक करने की मुहिम शुरु की. 

पहले हाथरस (Hathras) के आंदोलन में घुसने की कोशिश की. लेकिन योगी सरकार (CM Yogi) ने खुफिया विभाग की रिपोर्ट पर कार्रवाई करते हुए इनके मंसूबों को नाकाम कर दिया. जिसके बाद अब ये फर्जी किसान बनकर मासूम किसानों को भड़काने में जुटे हैं. 

जाहिर सी बात है कि अगर किसी तरह की प्रशासनिक कार्रवाई होगी तो साजिश करने वाले ये कट्टरपंथी भाग खड़े होंगे. लेकिन मुसीबत में किसान ही पड़ेंगे. जिनके साथ पूरे देश की सहानुभूति जुड़ी है. जिसपर फिर विक्टिम कार्ड खेला जाएगा. 

इन मजहबी कट्टरपंथियों की साजिश का सबूत इन बातों से भी मिलता है. 

– किसान आंदोलन के दौरान भी उसी तरह की फर्जी बातें कही जा रही हैं. जो कि  CAA विरोधी दंगों के दौरान कही जा रही थीं.  CAA का विरोध ये कहकर किया गया कि इससे भारतीय मुसलमानों की नागरिकता खत्म कर दी जाएगी. वहीं किसान आंदोलन के लिए ये बहाना बनाया गया है कि इससे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और अनाज मंडी की व्यवस्था खत्म कर दी जाएगी. जो कि पूरी तरह गलत है. 

– CAA विरोधी आंदोलन में सहानुभूति जुटाने के लिए महिलाओं और बच्चों को आगे किया गया था. किसान आंदोलन में मासूम और बुजुर्ग किसानों को आगे करके सहानुभूति जुटाई जा रही है. 

– CAA विरोधी आंदोलन के दौरान भी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को बंधक बनाने की कोशिश की गई थी. वहीं किसान आंदोलन के नाम पर भी देश की राजधानी को निशाना बनाया जा रहा है.  

– CAA विरोधी आंदोलन की तरह इस बार भी  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Modi) को जान से मारने की धमकियां खुलेआम दी जा रही हैं.

दरअसल किसान आंदोलन में घुसकर मजहबी कट्टरपंथी एक तीर से दो निशाने साध रहे हैं. पहला तो मोदी सरकार का विरोध करने के लिए उन्हें किसानों के रुप में मोहरे मिल गए हैं. दूसरे इस बहाने वह सनातनी समाज के दो अहम हिस्से हिंदुओं और सिखों में फूट डलवाने की भी साजिश कर रहे हैं.

2. पाकिस्तान परस्त खालिस्तानी
पाकिस्तानी तानाशाह जिया उल हक ने भारत को तोड़ने के लिए खालिस्तानी अलगाववादी आंदोलन को हवा दी थी. जिसकी वजह से भारत को इंदिरा गांधी जैसी लौह महिला को गंवाना पड़ा. देश के दिल पर ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसा घाव लगा. इन सबके जिम्मेदार खालिस्तानी आतंकी देश से भाग गए. लेकिन वह बाहर से ही अब भी भारत को तोड़ने की साजिश रच रहे  हैं. किसान आंदोलन के रुप में उन्हें मुंह मांगी मुराद मिल गई  है. 

देश के किसानों को भड़काने की खालिस्तानी आतंकियों की साजिश काफी समय से जारी थी. इस साल के सितंबर महीने में कथित सिख फॉर जस्टिस (SFJ) ने डोर टू डोर कैंपेन चलाकर अलगाववादी एजेंडे ‘जनमत संग्रह 2020’ (Referendum 2010) के जरिए अपने समर्थक तलाश रहे थे. पंजाब की अमरिंदर सरकार को केन्द्र सरकार ने इसकी पूरी खबर दे दी थी. लेकिन इन आतंकियों के खिलाफ आधे अधूरे मन से कार्रवाई की गई. 

यहां तक कि खालिस्तानी आतंकी संगठन SFJ कनाडा और रूस के पोर्टल के जरिए जनमत संग्रह 2020 के लिए एक हज़ार समर्थक नियुक्त करके उन्हें पैसे देने की भी योजना बना रहा था. यह संगठन  21 सितंबर को लगभग 30 दिनों के भीतर पंजाब के 12000 गाँवों को कवर करना चाहता था. 

देश विरोधी इस साजिश को नियंत्रित करने के लिए आखिरकार गृह मंत्रालय आगे आया और NIA ने जांच शुरु कर दी.  SFJ को गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के दायरे में पाया था और इसके तमाम नेताओं को आतंकवादी घोषित किया गया था. 

लेकिन इसके बाद भी खालिस्तानी आतंकियों की गतिविधियां थमी नहीं और उन्होंने किसान आंदोलन की भीड़ में अपनी घुसपैठ बना ली है. इसके स्पष्ट सबूत मिले हैं. किसान आंदोलन में ये खालिस्तानी पिट्ठू इंदिरा की हत्या का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री को जान से मारने की धमकी देते हैं और खालिस्तानी आतंकी भिंडरावाले के पोस्टर लहराते हैं. 

3. मोदी विरोधी राजनीतिक दल  
किसानों को भड़काने के तीसरे बड़े गुनहगार हैं मोदी विरोधी राजनीतिक दल. जो लोकतंत्र के अखाड़े में तो भाजपा के सामने टिक नहीं पाए. लेकिन अब चोर दरवाजे से पीएम मोदी के रास्ते की अड़चने बढ़ाने में जुटे हैं. संसद में जिनकी सदस्य संख्या न्यूनतम स्तर पर पहुंची हुई है. वह सड़क पर हंगामा मचा रहे हैं. 
कृषि बिल पर सबसे पहले केन्द्रीय मंत्रिमंडल से हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफा दिया. कृषि बिल पर उनका दर्द समझ में आता है. क्योंकि इससे बादल परिवार के राजनीतिक हित प्रभावित होते हैं. 

– लेकिन  साल 2006 में पंजाब की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम (Agrisulture Produce Market amedment act) के जरिए राज्य में निजी कंपनियों को खरीददारी की अनुमति दी थी.  कानून में निजी यार्ड तैयार करने की भी अनुमति मिली थी. किसानों को भी छूट दी गई कि वह कहीं भी अपने उत्पाद बेच सकता है. यह काफी हद तक वर्तमान कृषि कानून के जैसा ही मसौदा था. 

– कांग्रेस पार्टी ने भी  साल 2019 के आम चुनाव के दौरान अपने चुनावी घोषणापत्र में मोदी सरकार के कृषि कानून जैसा ही कानून बनाने का वादा किया था. लेकिन आज नासमझी में इसका विरोध कर रहे किसानों के विरोध प्रदर्शन की आग में हाथ सेंक रही है. 
कांग्रेस पार्टी के नेता इस बात को बर्दाश्त कर ले रहे हैं कि वो मोदी विरोध में अंधे होकर जिस प्रदर्शन का समर्थन कर रही है. इसमें शामिल खालिस्तानी खुलेआम देश की पूर्व प्रधानमंत्री आयरन लेडी इंदिरा गांधी की हत्या पर ‘जैसे इंदिरा को ठोका, वैसे मोदी को भी ठोकेंगे’ कहते हुए गर्व महसूस कर रहे हैं. 

 दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी तो भविष्य की राजनीति करती ही नहीं. उसे सिर्फ वर्तमान से मतलब होता है. केन्द्र की मोदी सरकार का विरोध करने मजहबी कट्टरपंथी उतरें या फिर कथित किसान या फिर कोई भी और. आम आदमी पार्टी आंख मूंदकर उसका साथ देगी. क्योंकि मोदी विरोध का हल्ला मचाने से ही आम आदमी पार्टी के नेता चर्चा में आ पाते हैं.

4. चीन, पाकिस्तान और तुर्की जैसे दुश्मन देश 
भारत को अस्थिर करना दुश्मन देशों का सबसे बड़ा सपना है. उनके लिए किसान आंदोलन जैसी अराजकता से बढ़िया कोई मौका नहीं हो सकता है. 
सीमा पर चीन को दिए आक्रामक जवाब, विदेशी कूटनीति में भारत का बढ़ता महत्व, जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाकर चीन पाकिस्तान को करारा झटका दिया जाने जैसे मोदी सरकार के कारनामों की चोट दुश्मन देश अब तक सहला रहे हैं. कोरोना काल में यूरोप, अमेरिका, इजरायल, ऑस्ट्रेलिया, जापान और मध्य पूर्व के अधिकतर  देशों से भारत के प्रगाढ़ संबंध भारत से जलने वाले पड़ोसियों की चिंता का कारण हैं. ऐसे में चीन, तुर्की, पाकिस्तान जैसे देशों के लिए दिल्ली में मची आपाधापी से अच्छा कुछ हो ही नहीं सकती. 

दुश्मन को ऐसा महसूस हो रहा है कि दिल्ली में आंतरिक विरोधों से घिरी भारत सरकार विदेशी मोर्चे पर उतने आक्रामक तरीके से व्यवहार नहीं कर सकती. जैसा कि पीएम मोदी के कार्यकाल में अभी तक होता आया है.
 
भारत में अराजकता फैलाने की साजिश का खुलासा इस बात से भी होता है कि हाथरस में दंगा भड़काने की असफल कोशिश की जांच करते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने पता लगाया था कि मॉरिशस के जरिए पीएफआई (PFI) को 50 करोड़ रुपये मिले थे.  इसके अलावा भी अलग अलग स्रोतों से इस जिहादी संगठन को 100 करोड़ से ज्यादा की फंडिंग की गई.

ये पैसे भारत में आ चुके हैं. इनकी रिकवरी या जब्ती नहीं हुई है. किसान आंदोलन के दौरान जिस सिस्टमेटिक तरीके से राशन पानी, कंबल जैसे जरुरी इंतजाम चल रहे हैं. उसे देखकर बड़ी फंडिंग का शक जरुर पैदा होता है. 

हाल ही में टुकड़े टुकड़े गैंग की शेहला रशीद के पिता ने उनके घर पर तीन करोड़ रुपए कैश आने की शिकायत दर्ज कराई है. इन सभी अलग अलग घटनाओं को एक कड़ी में जोड़ें तो यह साफ होता है कि भारत में अस्थिरता पैदा करने के लिए विदेश से भारी मात्रा में फंडिंग आ चुकी है. 

अन्नदाताओं से पूरी सहानुभूति 
इस भीषम ठंड में सड़क ठिठुर रहे अन्नदाताओं से सबकी सहानुभूति है. उनकी आय बढ़ाने के लिए लाया गया कृषि कानून उनके ही हित के लिए है. लेकिन भोले किसानों को मोहरा बनाकर केन्द्र सरकार के खिलाफ साजिश रची जा रही है. 

केन्द्र सरकार उनसे चर्चा के लिए तैयार है. लेकिन कथित किसान नेता जब बातचीत की टेबल पर बैठते हैं तो समझौते की कोई गुंजाइश निकलने ही नहीं देते. जिससे लगता है कि उनपर दबाव है कि धरना प्रदर्शन खत्म होने का कोई बहाना सरकार को देना ही नहीं है.

सच तो ये है कि तीनों कृषि सुधार विधेयक यानी कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन-कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020 पारित किए जाने का  उद्देश्य ‘एक भारत, एक कृषि बाज़ार’ के सपने को साकार करना है. 

जिससे एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (APMC) के एकछत्र राज को ख़त्म किया जा सके. इसी में भारतीय कृषि और किसानों का हित शामिल है.

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