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जानें- चिकन नेक के नाम से पहचाने जाने वाले सिलीगुड़ी कॉरिडोर का भारत के लिए रणनीतिक महत्‍व

सिलिगुड़ी कॉरिडोर को चिकन नेक के नाम से भी जाना जाता है।

भारत के हल्‍दीबाड़ी और बांग्‍लादेश के चेलाहाटी के बीच 55 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद रेलवे लाइन शुरू हो रही है। ये पूरा इलाका सिलीगुड़ी कॉरिडोर के अंतर्गत आता है जिसको चिकन नेक के नाम से भी जानते हैं।

नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्‍क)। भारत और बांग्‍लादेश के लिए आज का दिन काफी खास है। खास इसलिए क्‍योंकि गुरुवार को पीएम नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना वाजिद के बीच वर्चुअल समिट है। इसके अलावा ये दोनों इस समिट के दौरान भारत के हल्दीबाड़ी और बांग्लादेश के चिलाहाटी के बीच रेल सेवा की शुरुआत करेंगे। इस रेल सेवा की शुरुआत 5 दशकों के लंबे इंतजार के बाद हो रही है। दोनों देशों के बीच शुरू होने वाली ये रेल लाइन इसलिए भी खास है क्‍योंकि यह उस सिलीगुरी कॉरिडोर का हिस्‍सा है जिसको हम चिकन नेक के नाम से भी जानते हैं।

ये कॉरिडोर करीब 22 किमी के दायरे में फैला है। ये कॉरिडोर नेपाल, भूटान और बांग्‍लादेश के बीच फैला है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर 1947 में बंगाल विभाजन के बाद असतित्‍व में आया था। 1975 में सिक्किम जब भारतीय राज्‍य बना तो भारत को उत्‍तर-पूर्व स्थित चुंबी वैली में चीन पर निगाह रखने के लिए एक रणनीतिक बढ़त हासिल हो गई थी। चिकन नेक पर असम राइफल्‍स, पश्चिम बंगाल पुलिस, भारतीय सेना और सीमा सुरक्षा बल की कड़ी निगाह रहती है।

चिकन नेक की जहां तक बात है तो इस पर चीन की नजर काफी समय से लगी हुई है। वर्ष 2017 में डोकलाम विवाद भी चिकन नेक पर कब्‍जे की मंशा को लेकर ही हुआ था। ये विवाद करीब 72 दिनों तक चला था। चिकन नेक का रणनीतिक महत्‍व काफी अधिक है। दरअसल, ये पूरा कॉरिडोर भारत के पूर्वी राज्‍यों का एक प्रवेश द्वार है। वर्ष 2017 में चीन की तरफ से जो विवाद खड़ा किया गया था उसकी वजह अनाधिकृत रूप से भारत के समीप और भूटान के इलाके में सड़क निर्माण करना था। भारत ने जब इसका विरोध किया और चीनी सैनिकों को सड़क बनाने से रोका था परिणामस्‍वरूप चीन ने वहां पर अपनी सेना का जमावड़ा बढ़ा दिया था।

इसके जवाब में भारत ने भी पूरी तैयारी के साथ चीन का सामना करने का मन बना लिया था। चीन के इतना करीब आने से भारत के लिए खतरा इसलिए भी बढ़ गया था क्‍योंकि यदि चीन यहां तक आ जाता है तो वो भारत पर निगाह रखने में सक्षम हो जाएगा। ऐसी सूरत में चीन भारतीय सेना की मौजूदगी और उसकी आवाजाही के बारे में भी पता लगा सकता था। ये पूरा इलाका पूर्वी भारत के राज्‍यों में सैनिकों और रसद आपूर्ति के लिए काफी अहम है।

चीन की आक्रामकता के चलते भारत ने इस इलाके की ऊंची चोटियों पर अपने टैंकों को तैनात कर दिया था। मेजर जनरल (रिटायर्ड) एजेबी जैनी के मुताबिक इस इलाके में भारत की स्थिति काफी मजबूत है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि यहां की ऊंची चोटियों पर भारतीय सेना तैनात है जो हर वक्‍त चीन की सेना और उसके जवानों पर नजर रख सकती है। वर्तमान में जो रेल सेवा शुरू हो रही है वो देश के इस इलाके को बांग्‍लादेश की सीमा से जोड़ देगी।

आपको बता दें कि भारत चीन से पूर्व में डोकलाम के अलावा नाथूला में भी परेशानी झेल चुका है। मौजूदा रेल लिंक से भारत की राह इस इलाके के सीमावर्ती इलाकों में जवानों को भेजने की भी राह आसान हो जाएगी। हालांकि फिलहाल हल्‍दीबाड़ी और चिलाहाटी के बीच शुरू होने वाला रेल लिंक सामान की आवाजाही के लिए ही है। इससे पहले भारत और बांग्‍लादेश के बीच मैत्री एक्‍सप्रेस के जरिए लोगों की आवाजाही को सुनिश्चित किया जा चुका है।

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