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अमेरिका को खटक रहा है भारत का ‘मेक इन इंडिया’ अभियान! ये है वजह

joe biden

Make In India: यूएसटीआर की सोमवार को कांग्रेस को सौंपी गई इस रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत का बड़ा बाजार, आर्थिक वृद्धि और विकास की ओर अग्रसर उसकी अर्थव्यवस्था जहां उसे अमेरिकी निर्यातकों के लिए आवश्यक बाजार बनाती है वहीं दूसरी तरफ भारत में सामान्य तौर पर व्यापार पर प्रतिबंध लगाने वाली नीतियों के चलते द्विपक्षीय व्यापार संभावनाओं को कम किया है.’

वाशिंगटन. बाइडेन प्रशासन (Biden administration) ने अमेरिकी संसद से कहा है कि भारत में हाल में शुरू किया गया ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों में खड़ी होने वाली चुनौतियों का प्रतीक बन गया है. अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि (USTR) ने अपनी 2021 की व्यापार नीति एजेंडा और 2020 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि 2020 के दौरान अमेरिका ने लगातार भारत के साथ बाजार पहुंच से जुड़े मुद्दों को सुलझाने के लिए प्रयास जारी रखा.

यूएसटीआर की सोमवार को कांग्रेस को सौंपी गई इस रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत का बड़ा बाजार, आर्थिक वृद्धि और विकास की ओर अग्रसर उसकी अर्थव्यवस्था जहां उसे अमेरिकी निर्यातकों के लिए आवश्यक बाजार बनाती है वहीं दूसरी तरफ भारत में सामान्य तौर पर व्यापार पर प्रतिबंध लगाने वाली नीतियों के चलते द्विपक्षीय व्यापार की संभावनाओं को कम किया है. भारत में हाल में आयात के विकल्प के तौर पर शुरू किये गये ‘मेक इन इंडिया’ अभियान ने द्विपक्षीय व्यापार संबंधों के समक्ष चुनौतियों को बढ़ा दिया है.’

अमेरिका ने 5 जून 2019 से सामान्यीकृत तरजीही प्रणाली (जीएसपी) कार्यक्रम के तहत भारत की पात्रता को समाप्त कर दिया था. अमेरिका ने यह कदम जीएसपी बाजार पहुंच मानदंड के मामले में भारत के अनुपालन पात्रता को लेकर उठी चिंताओं की समीक्षा के बाद उठाया.

जीएसपी के तहत भारत को मिलने वाले व्यापार लाभ निलंबित कर दिये जाने के बाद से ही अमेरिका और भारत 2019 से तार्किक बाजार पहुंच पैकेज पर काम करने में जुटे हुए हैं. वर्ष 2020 में भी यह काम जारी रहा. इस बातचीत में अमेरिका का उद्देश्य भारत में कई तरह की गैर- शुल्कीय बाधाओं को दूर करना, विभिन्न शुल्कों में लक्षित कमी लाना और भारत में अमेरिकी उत्पादों के लिए बाजार पहुंच में सुधार लाना शामिल है.

रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2019 में अमेरिका में आयात की गई सेवाओं में 62.3 अरब डॉलर के साथ ब्रिटेन लगातार सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बना रहा. वहीं भारत 29.7 अरब डॉलर की सेवाओं के आयात के साथ छठा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बना रहा. कनाडा से 38.6 अरब डॉलर, जापान से 35.8 अरब डॉलर, जर्मनी से 34.9 अरब डॉलर और मेक्सिको से 29.8 अरब डॉलर की सेवाओं का आयात किया गया. (भाषा इनपुट के साथ)

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