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Retirement Planning: रिटायरमेंट के बाद भी बनी रहे आमदनी, कैसे करें इंतजाम; जानिए तमाम सवालों के जवाब

How To Retire Comfortably: आप अपनी रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी को आरामदेह बनाने की तैयारी जितनी जल्दी शुरू करेंगे उतने ही फायदे में रहेंगे

How To Build A Big Retirement Corpus: क्या आप अपने रिटायरमेंट के लिए तैयार हैं? पहली बार में लग सकता है कि यह सवाल किसी ऐसे शख्स के लिए है, जो बहुत जल्द साठ साल के होने वाले हैं या जिनका रिटायरमेंट काफी करीब है. लेकिन दरअसल ऐसा सोचना पूरी तरह सही नहीं है. इस  सवाल पर विचार करना न सिर्फ उनके लिए महत्वपूर्ण है, जो रिटायरमेंट के करीब हैं, बल्कि उनके लिए भी उतना ही अहम है, जिन्हें रिटायर होने में अभी बरसों बाकी हैं. आइए समझते हैं कि रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी को आरामदेह बनाने के लिए ऐसे ही और किन सवालों पर गौर करना ज़रूरी है.

रिटायरमेंट के समय आपके पास कितनी होनी चाहिए जमापूंजी?

रिटायरमेंट प्लानिंग का पहला कदम है, यह तय करना कि रिटायर होने के बाद आपको अपनी जिंदगी आसानी से गुज़ारने के लिए कितने पैसों की ज़रूरत होगी. यह कैलकुलेशन करने के लिए आपको इन सवालों के जवाब देने होंगे :

  • अभी आपका एक महीने का कुल खर्च कितना है?
  • आपके रिटायर होने में अभी कितना वक्त बाकी है?
  • इस दौरान महंगाई किस रफ्तार से बढ़ने के आसार हैं यानी इंफ्लेशन का रेट क्या रहने वाला है?
  • आप रिटायरमेंट कॉर्पस बनाने के लिए जो निवेश करेंगे उस पर रिटर्न की अनुमानित दर क्या होगी?

इन सवालों के जवाब आपको यह कैलकुलेट करने में मदद करेंगे कि रिटायरमेंट के बाद आपका अनुमानित मासिक खर्च कितना होगा. इसी से पता चलेगा कि हर महीने उतनी रकम हासिल करने के लिए आपको कितना फंड या कॉर्पस जुटाना चाहिए. इसके लिए आप किसी फाइनेंशियल प्लानर या इंटरनेट पर उपलब्ध रिटायरमेंट प्लानिंग कैलकुलेटर्स की मदद ले सकते हैं. एक आसान फॉर्मूला यह भी है कि आप अपने सालाना खर्च की कम से कम 20 गुना रकम रिटायरमेंट कॉर्पस के तौर पर जुटाएं. जिस भी तरीके से गणना करें, जब एक बार आपके सामने फंड का टारगेट साफ हो जाएगा तो बचत और निवेश की रणनीति बनाना आसान होगा.

जितनी जल्दी शुरुआत करेंगे, नतीजा उतना सुखद होगा

एक युवा व्यक्ति को रिटायरमेंट के बारे में सोचना या बात करना अटपटा लग सकता है, लेकिन सच यही है कि रिटायरमेंट की प्लानिंग और उस पर अमल आप जितनी जल्दी शुरू करेंगे, रिटायरमेंट के समय आपके पास उतना ही बड़ा कॉर्पस होगा.

मिसाल के तौर पर अगर कोई शख्स 30 साल की उम्र से हर महीने 10 हजार रुपये सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (SIP) में निवेश करे तो 12 फीसदी के औसत सालाना रिटर्न के हिसाब से 60 साल में उसके रिटायरमेंट फंड की वैल्यू 3 करोड़ 5 लाख 20 हज़ार रुपये से ज्यादा हो जाएगी. इतना ही निवेश अगर 35 साल की उम्र में शुरू किया, तो 60 साल की उम्र में उसे 1 करोड़ 68 लाख 62 हज़ार रुपये मिलेंगे.

यानी महज पांच साल की देरी रिटायरमेंट फंड की रकम को तकरीबन आधा कर सकती है. अगर निवेश करने में और 5 साल की देरी हुई, यानी SIP में हर महीने 10 हज़ार रुपये डालने की शुरुआत 40 साल की उम्र में की, तो 20 साल बाद 91 लाख 12 हज़ार रुपये मिलेंगे. जबकि 45 साल की उम्र में SIP स्टार्ट करने पर निवेश की यही रणनीति रिटायरमेंट के समय महज 47 लाख 14 हज़ार रुपये ही दे पाएगी. जाहिर है कि आप नियमित बचत और निवेश की शुरुआत जितनी जल्दी करेंगे उतना ही फायदे में रहेंगे.

देर आए, दुरुस्त आए यानी जब जागे, तभी सवेरा

ऊपर दिए उदाहरण का मतलब यह नहीं है कि अगर रिटायरमेंट की प्लानिंग करने में आपसे देर हो गई है, तो अब आप कुछ नहीं कर सकते. जब से जागे, तभी से सवेरा वाली कहावत पर अमल करते हुए आप देर से भी अपनी कोशिश शुरू कर सकते हैं. इसमें आपको उतना फायदा भले ही न मिले, जितना बरसों पहले शुरूआत करने पर मिल सकता था, लेकिन निराशा में हाथ पर हाथ धरकर बैठने से बेहतर है कि एक सुरक्षित और सुखद रिटायरमेंट के लिए फौरन कदम उठाए जाएं.

देर से कर रहे शुरुआत तो इन बातों का रखें ध्यान

अगर आपने रिटायरमेंट कॉर्पस के लिए बचत और निवेश की शुरुआत देर से की है या करने जा रहे हैं, तो कुछ बातों का खास ध्यान रखना होगा.

  • EPF/PPF/FD काफी नहीं: रिटायरमेंट के समय आर्थिक सुरक्षा देने वाला कॉर्पस जुटाने की रणनीति में प्रॉविडेंट फंड या फिक्स्ड डिपॉजिट जैसे सुनिश्चित रिटर्न देने वाले डेट इंस्ट्रूमेंट्स की अपनी खास जगह है. लेकिन कम समय में पर्याप्त फंड जुटाने हैं, तो सिर्फ इनके भरोसे नहीं रहा जा सकता. इंफ्लेशन यानी कीमतों में बढ़ोतरी को एडजस्ट करने के बाद ऐसे निवेश में वास्तविक बढ़ोतरी बेहद कम या कभी कभी तो निगेटिव भी हो सकती है.
  • निवेश की रणनीति आक्रामक हो, लेकिन सावधानी भी बनी रहे :  खोए वक्त की भरपाई के लिए आपको निवेश की रणनीति में थोड़ी आक्रामकता रखनी होगी, लेकिन सावधानी बनाए रखते हुए. यहां एग्रेसिव इनवेस्टमेंट का मतलब बिना सोचे समझे जोखिम लेना नहीं है, लेकिन डेट फंड्स या डेट इंस्ट्रूमेंट्स के मुकाबले इक्विटी में निवेश करना जरूरी है. ध्यान रहे कि कम वक्त में ज्यादा रिटर्न हासिल करने के चक्कर में स्मॉल कैप या सेक्टोरल फंड्स में निवेश न करें, क्योंकि उनमें जोखिम ज्यादा रहता है. अच्छे रिकॉर्ड वाले मल्टी कैप फंड्स आपके लिए एक बेहतर विकल्प हो सकते हैं.
  • उम्र के हिसाब से बचत की रणनीति: उम्र के हिसाब से बचत और निवेश की रणनीति बताने वाला एक थंब रूल यहां आपके काम आ सकता है. यह थंब रूल है, ट्वेंटीज़ की उम्र में आय का कम से कम 20 फीसदी, थर्टीज़ में 30 प्रतिशत, फोर्टीज़ में 40 फीसदी और पचास की उम्र के बाद कम से कम 50 फीसदी हिस्सा बचाना चाहिए. बढ़ती उम्र में अक्सर जिम्मेदारियां और खर्च भी बढ़ जाते हैं, इसलिए इस रणनीति पर अमल करना आसान नहीं होगा. लेकिन यहां समझने वाली बात यह है कि अगर आपका रिटायरमेंट करीब आ रहा है और आप अपने लक्ष्य से काफी दूर हैं, तो आपको बचत और निवेश पर पूरा ज़ोर लगाना ही पड़ेगा.
  • खर्च घटाएं, वेल्थ डिस्ट्रॉयर से दूर रहें:  बचत और निवेश बढ़ाने के लिए गैरज़रूरी खर्च घटाना और वेल्थ डिस्ट्रॉय करने वाले निवेशों से दूर रहना ज़रूरी है. मिसाल के तौर पर ऊंची ब्याज दरों पर मिलने वाले पर्सनल लोन या क्रेडिट कार्ड लोन से हर हाल में दूर रहें. चालीस की उम्र के बाद लोन लेकर दूसरी या तीसरी प्रॉपर्टी में निवेश करने की गलती भी न करें. ऐसी प्रॉपर्टी वेल्थ बढ़ाने की जगह उसे नष्ट करने वाली साबित हो सकती है. ऊंची लागत वाले ‘इंश्योरेंस कम इनवेस्टमेंट’ प्लान्स से दूर रहें. कार लोन लेकर महंगी गाड़ी खरीदने से भी बचें.
  • हेल्थ इंश्योरेंस ज़रूर लें:  खर्च घटाने की तमाम कोशिशों के बीच यह ध्यान ज़रूर रखें कि आपका हेल्थ इंश्योंरेस हर हाल में बरकरार रहे. हेल्थ कवरेज को खर्च के तौर पर नहीं, बल्कि भविष्य में अचानक आ पड़ने वाले भारी भरकम खर्च से बचाने वाले निवेश के तौर पर देखें. अगर ऐसा नहीं किया तो एक भी हेल्थ इमरजेंसी आपके पूरे रिटायरमेंट प्लान को चौपट कर सकती है. यह भी ध्यान रखें कि हेल्थ इंश्योरेंस जितनी जल्दी ले लेंगे उतना सस्ता पड़ेगा और आसानी से मिलेगा.

तमाम कोशिशों के बावजूद लक्ष्य दूर लगे तो क्या करें?

तमाम कोशिशों के बावजूद अगर रिटायरमेंट के बाद के खर्चे उठाने के लिए पर्याप्त फंड जुटा पाना मुमकिन नहीं लग रहा तो भी निराश होने की ज़रूरत नहीं है. आप अगर किसी बड़े महानगर में रहते हैं तो रिटायरमेंट के बाद किसी कम खर्चीले टियर-2 या टियर-3 शहर में जाकर बसने के बारे में भी सोच सकते हैं. इससे आप कम बजट में भी अपना खर्च चला पाएंगे.

अगर महानगर में आपका अपना फ्लैट या घर है तो उसे बेचकर मिलने वाली रकम के एक हिस्से से आप कम महंगे इलाके में छोटा लेकिन सुविधाजनक घर ले सकते हैं और बाकी रकम अपने रिटायरमेंट कॉर्पस को बढ़ाने में लगा सकते हैं. अगर किसी छोटे शहर में आपका अपना घर है या आप जीवन का शुरुआती हिस्सा वहां गुज़ार चुके हैं तो यह फैसला आपको एक अलग खुशी दे सकता है. लेकिन उम्र के इस पड़ाव में जगह बदलने का यह फैसला बाकी तमाम विकल्पों के नाकाफी होने के बाद ही करना चाहिए.  तो इन बातों का ख्याल रखकर अगर आप एक सोची समझी रणनीति पर काम करेंगे तो रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी आराम और चिंतामुक्त होकर गुज़ार सकेंगे.

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