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वास्तुशास्त्र: सुखी और निरोगी रहने के लिए इन बातों को अपनाना है फायदेमंद

वास्तुशास्त्र प्राकृतिक ऊर्जा के अनुरूप आगे बढ़ने में सहायक है. खाना, सोना, भेंटवार्ता, पठन पाठन सभी की दिशा वास्तुशास्त्र में बताई गई है.

वास्तुशास्त्र घर की ऊर्जा के अनुरूप आगे बढ़ने की सीख देता है. सौरमंडल से लेकर ब्रह्मांड तक से हमारा वास्तुशास्त्र प्रभावित होता है. उचित दिशा का चयन करने में सहायता श्रेष्ठतम जीवन जीने के लिए राजमार्ग तैयार करता है. वास्तुशास्त्र के मूल सिद्धांतां में भोजन ओर शयन की दिशा का खास महत्व है.

सोते समय सिर दक्षिण या पूर्व में होना चाहिए. उत्तर और पश्चिम की दिशा शयन के दौरान दैहिक रसायनों के लिए ठीक नहीं मानी गई है. खानपान में मुंह पश्चिम में अथवा पूर्व में होना चाहिए. इसी प्रकार ध्यान और पूजा का मंदिर उत्तर या पूर्व में होना चाहिए. ईशान कोण में पूजा स्थल शुभ माना गया है.

घर में सुख शांति बनी रहे इसके लिए अपनों से सुख साझा करें. मेहमानों को बुलाएं या मेहमान बनकर जाएं. खाना कभी दक्षिण दिशा में मुंह करके नहीं बनाना चाहिए. पूर्व दिशा प्रयोग भोजन निर्माण के दौरान किया जाना चाहिए. घर में टूटा शीशा न रखें. पुरानी पिक्चर्स को हटा दें. देवी देवताओं के चित्र हैं तो उन्हे विसर्जित कर दें. एक मंजिल से दूसरी मंजिल पर जाने के लिए प्रयोग होने वाली सीढ़ी कॉर्नर पर नहीं होना चाहिए.

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शयन कक्ष में अनावश्यक सामान इकट्ठा न होने दें. बिस्तर से शीशा नजर नहीं आना चाहिए. अध्यययन की कुर्सी-टेबल पर पुस्तकों और अन्य सामग्रियों का अनावश्क जमा न होने दें. पठन पाठन की जगह को साफ रखें. दवाओं को यहां वहां खुले में बिखराकर न रखें, इससे सेहत नरम रह सकती है,

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