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Bihar Politics: कुशवाहा या ललन, किसको मिलेगी जेडीयू की कमान? CM नीतीश की चॉइस पर टिकी निगाहें

JDU News: राजनीतिक के जानकार कहते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा को पार्टी में लाने के पीछे नीतीश कुमार का बड़ा उद्देश्य जेडीयू के जनाधार को मजबूती देना है. कुशवाहा पहले जदयू संसदीय बोर्ड के अध्‍यक्ष बने, फिर विधान पार्षद भी बना दिए गए और अब राष्ट्रीय अध्यक्ष की दौड़ में भी शामिल हैं.

पटना. बिहार की राजनीति के लिए आगामी 31 जुलाई बेहद अहम होने वाला है. सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक इसी तारीख को दिल्ली में होने वाली है. माना जा रहा है कि बैठक में पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव किया जा सकता है. माना जा रहा है कि बीते 7 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैबिनेट (Prime Minister Narendra Modi cabinet) में शामिल होने के बाद से ही वर्तमान अध्यक्ष राम चंद्र प्रसाद सिंह यानी आरसीपी सिंह (RCP Singh) पर अध्यक्ष पद को छोड़ने का दबाव है. आवाज पार्टी के भीतर से उठाई जा रही है.

कहा जा रहा है कि आरसीपी को ‘एक आदमी एक पद’ के सिद्धांत के तहत दो पदों में से एक छोड़ देना चाहिए. अब इस पर निर्णय क्या होता है यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन अगले अध्यक्ष के नाम को लेकर अटकलबाजियों का दौर शुरू हो गया है. सियासत के गलियारे में दो नामों की विशेष चर्चा है. एक जदयू संसदीय बोर्ड के अध्‍यक्ष उपेंद्र कुशवाहा और दूसरे मुंगेर से सांसद ललन सिंह. दोनों ही सीएम नीतीश के करीबी माने जाते हैं, लेकिन सवाल तो यही है कि अध्यक्ष पद के लिए आखिर सीएम नीतीश की पसंद कौन होंगे?

सियासत के जानकार कहते हैं कि यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि बिहार में कभी नंबर वन पार्टी जेडीयू तीसरे नंबर पर जाने के बाद क्या फैसला करती है. यह बात भी बेहद महत्वपूर्ण है कि नीतीश कुमार उपेंद्र कुशवाहा को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर जेडीयू में ‘लव-कुश समीकरण’ को साधते हैं या ललन सिंह को मौका देकर अपनी सोशल इंजीजियरिंग  में अगड़ों को साथ लाने की कोशिश करते हैं?

जदयू में सोशल इंजीनियरिंग का सवाल
जातीय व सामाजिक समीकरण के लिहाज से देखें तो फिलहाल ललन सिंह का पलड़ा अधिक भारी दिख रहा है. सियासत के जानकार इसके पीछे जो तर्क दे रहे हैं उसके अनुसार वर्तमान अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह सीएम नीतीश के स्वजातीय कुर्मी बिरादरी से आते हैं. वहीं, जदयू के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा कोइरी जाति से हैं. जिस लव कुश समीकरण की बात जदयू के बीच चर्चा में है उसके अनुसार प्रतिनिधित्व के स्तर पर दोनों ही जातियों के हिस्से कुछ न कुछ है.  ऐसे मेंअन्‍य जातीय समीकरणों को साधने के लिए सोशल इंजीनियरिंग का सवाल सीएम नीतीश के सामने है.

रेस से बाहर नजर आ रहे हैं ये बड़े नेता
राजनीति के जानकार कहते हैं कि मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष का पद उपेंद्र कुशवाहा को देते हैं तो इसी काेइरी समाज से आने वाले प्रदेश जेडीयू अध्‍यक्ष उमेश कुशवाहा को पद से हटाया जा सकता है. अगर ऐसा नहीं होता है तो ‘ लव-कुश’ (कुर्मी-कोइरी जाति) से हटकर कोई और बड़ा नाम राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष के रूप में समाने आ सकता है. पार्टी में ललन सिंह, विजय चौधरी व संजय झा जैसे ऐसे कुछ बड़े नाम है. हालांकि विजय चौधरी और संजय झा बिहार सरकार में मंत्री हैं. ऐसे में ‘एक व्‍यक्ति एक पद’ के सिद्धांत को देखें तो वे दौड़ से बाहर नजर आ रहे हैं.

कुशवाहा के बारे में सोच रहे हैं सीएम नीतीश?
राजनीतिक के जानकार कहते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा को नीतीश कुमार ने फिर साथ लाया है तो इसके पीछे बड़ा उद्देश्य जेडीयू के जनाधार को मजबूती देना है. कुशवाहा के जेडीयू में आने के तीन महीने के अंदर ही वे पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्‍यक्ष बन गए. उन्हें विधान पार्षद भी बना दिया गया है और अब राष्ट्रीय अध्यक्ष की दौड़ में भी शामिल माने जा रहे हैं. उनकी मजबूत दावेदारी भी है क्योंकि जेडीयू में आने के पहले वे राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं.

जदयू सांसद ललन सिंह की दावेदारी में कितना दम?
उपेंद्र कुशवाहा के पास भी संगठन चलाने का लंबा अनुभव भी है. हालांकि, उनके अध्‍यक्ष बनने पर पार्टी के पुराने बड़े नेताओं में असंतोष से इनकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि वे पार्टी में अभी नए हैं. ऐसे उपेंद्र कुशवाहा ने स्वयं को अध्‍यक्ष पद की दौड़ से अलग बताया है. ऐसे में ललन सिंह पर जाकर सबकी निगाहें टिक जाती हैं. ललन सिंह पहले प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और वे न केवल नीतीश कुमार के विश्‍वासपात्र रहे हैं, बल्कि उनके पास संगठन चलाने का लंबा अनुभव भी है. जाहिर है राजनीतिक जानकारों की नजरों में फिलहाल ललन सिंह की दावेदारी मजबूत दिख रही है. हालांकि यह भी तय है कि सीएम नीतीश जब भी कोई फैसला लेंगे तो वह वर्तमान और भविष्य की राजनीति के मद्देनजर ही लेंगे.

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