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What is Taxable Income: सैलरी का कौन सा हिस्सा होता है टैक्सेबल और कैसे लगता है इस पर टैक्स?

Budget 2021 Taxable Income: बजट में होने वाली घोषणाओं में टैक्स से जुड़ी कई अहम बातें शामिल हो सकती हैं। इन घोषणाओं के बाद बहुत सारे लोगों के मन में कुछ सवाल आ सकते हैं, जैसे सैलरी के किस हिस्से पर टैक्स लगता है? ये टैक्स कैसे लगता है? आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब।

नई दिल्ली
Budget 2021 Taxable Income: इस बार के बजट में बेशक टैक्स से जुड़ी कुछ अहम घोषणाएं हो सकती हैं। टैक्स छूट की सीमा बढ़ सकती है, 80सी के तहत निवेश कर के टैक्स छूट पाने की सीमा बढ़ सकती है और सैलरी में मिलने वाले तमाम डिडक्शन में भी कुछ बदलाव हो सकते हैं। ऐसे में आपको कुछ बातें पता होनी चाहिए, जैसे आपकी सैलरी के किस हिस्से पर टैक्स लगता है? (What part of the salary is taxable?) टैक्सेबल सैलरी क्या होती है? (What is taxable salary?) ग्रॉस सैलरी क्या होती है? (What is gross salary?) आइए इन सवालों के जवाब जानते हैं, लेकिन पहले कुछ शब्दों का मतलब जानना जरूरी है।

क्या होती है ग्रॉस इनकम?
ग्रॉस सैलरी वह अमाउंट होता है, जो कंपनी की तरफ से आपको सैलरी (Is tax deducted from gross salary?) के रूप में मिलता है। ग्रॉस सैलरी में बेसिक सैलरी, एचआरए (हाउस रेंट अलाउंस), ट्रैवल अलाउंस, महंगाई भत्ता या डीए, स्पेशल अलाउंस, अन्य अलाउंस, लीव इनकैशमेंट आदि शामिल होते हैं। ग्रॉस सैलरी को टेक होम सैलरी भी कहा जाता है। टैक्सेबल इनकम की गणना के लिए ग्रॉस इनकम पता होना बहुत जरूरी है, क्योंकि यही पहला स्टेप होता है। आपकी ग्रॉस इनकम कितनी है, ये आपकी कंपनी की तरफ से दिए गए फॉर्म-16 में लिखा होता है।

क्या होती है नेट इनकम?
जब आप आईटीआर फॉर्म भरेंगे तो वहां शुरू के कुछ प्वाइंट भरने के बाद ही आपके सामने नेट सैलरी का एक कॉलम होगा। इसे आपको भरना नहीं होता है, ये अपना आप भर जाता है, लेकिन सवाल ये है कि ये होता क्या है। दरअसल, आपकी ग्रॉस सैलरी में से जब लीव ट्रैवल अलाउंस, हाउस रेंट अलाउंस, अर्न्ड लीव इनकैशमेंट जैसे तमाम अलाउंस को घटा दिया जाता है, तो ये आपकी नेट सैलरी बन जाती है।

क्या होती है टैक्सेबल इनकम?
जब आपकी नेट सैलरी निकल आती है तो उसमें से आपकी सेविंग्स और डिडक्शन को घटाया जाता है। जैसे स्टैंडर्ड डिडक्शन 50 हजार रुपये का कम किया जाता है, आपकी तरफ से टैक्स बचाने के लिए 80सी के तहत किए गए निवेशों को घटाया जाता है, आपकी तरफ से दिए गए हेल्थ इंश्योरेंस और लाइफ इंश्योरेंस के प्रीमियम को घटाया जाता है, किसी तरह के मेडिकल खर्च को आप दिखाते हैं तो उसे भी घटाया जाता है। साथ ही इसमें किसी प्रॉपर्टी से हुई कमाई या फिर किसी अन्य सोर्स से हुई आमदनी को भी जोड़ा जाता है। ये सब होने के बाद सीधे-सीधे इनकम टैक्स में मिलने वाली छूट की रकम को घटाया जाता है। (मौजूदा समय में यह 2.5 लाख रुपये आम आदमी के लिए है)। इन सब के बाद जो इनकम बचती है, वह टैक्सेबल इनकम होती है, जिस पर आपको टैक्स चुकाना होता है।

सैलरी के किस हिस्से पर लगता है टैक्स?
आपको जो सैलरी मिलती है, वह ग्रॉस सैलरी कहलाती है। इस सैलरी से तमाम अलाउंस, डिडक्शन और 80सी के तहत किए गए निवेश को घटाया जाता है। इन सब के बाद आती है टैक्सेबल इनकम, जिसके बारे में ऊपर बताया भी गया है। इस टैक्सेबल इनकम पर टैक्स (What part of the salary is taxable?) लगता है। अगर टैक्सेबल इनकम 5 लाख रुपये से कम होती है तो फिर आपको एक भी रुपया टैक्स नहीं देना होता है, क्योंकि प्रावधानों के मुताबिक आपको 2.5 लाख रुपये पर तो टैक्स से छूट मिलती है और बचे 2.5 लाख पर टैक्स रिबेट मिल जाती है।

सैलरी से कैसे काटा जाता है टैक्स?
जो लोग नौकरीपेशा हैं, वह तो जानते ही होंगे कि उनकी सैलरी पर टैक्स कैसे कटता है, लेकिन जिनकी अभी नौकरी नहीं लगी है या जिनकी हाल ही में नौकरी लगी है, उन्हें एक ये सवाल भी परेशान कर रहा होगा कि आखिर सैलरी से टैक्स कटता कैसे है? (How tax is deducted from salary?) सैलरी से टैक्स सीधे नियोक्ता की तरफ से ही काट लिया जाता है और आपकी तरफ से उसे टैक्स विभाग में जमा कर दिया जाता है। सैलरी पर टैक्स काटने से पहले नियोक्ता अपने कर्मचारियों से टैक्स बचाने के लिए की जाने वाली सेविंग्स के प्रूफ भी मांग लेता है, जैसे हेल्थ इंश्योरेंस का प्रीमियम, जीवन बीमा का प्रीमियम, किसी एफडी में निवेश, हाउस रेंट और भी तमाम चीजें। इनके आधार पर ये तय होता है कि आपकी सैलरी टैक्सेबल है या नहीं। अगर सैलरी टैक्सेबल होती है तो टीडीएस काट कर आपको सैलरी मिलती है। अगर आपको लगता है कि आपका अधिक टैक्स कटा है या कम कटा है तो आप आयकर रिटर्न भरते वक्त रिफंड ले सकते हैं या फिर अतिरिक्त टैक्स चुका सकते हैं।

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